श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी49. व्यासपूजा
इस प्रकार सभी भक्तों ने उस दिन संकीर्तन में बड़े ही आनन्द का अनुभव किया। इन दोनों भाइयों के नृत्य का सुख सभी भक्तों ने खूब ही लूटा। श्रीवास पण्डित के घर ही नित्यानन्दप्रभु का निवास-स्थान स्थिर किया गया। प्रभु अपने साथ ही निताई को अपने घर लिवा ले गये ओर शचीमाता से जाकर कहा- ‘अम्मा! देख, यह तेरा विश्वरूप लौट आया। तू उनके लिये बहुत रोया करती थी।’ माता ने उस दिन सचमुच ही नित्यानन्दप्रभु में विश्वरूप के ही रूप का अनुभव किया और उन्हें अन्त तक उसी भाव से प्यार करती रहीं। वे निताई और निमाई दोनों को ही समान रूप से पुत्र की भाँति प्यार करती थीं। एक दिन महाप्रभु ने नित्यानन्द जी का प्रेम से हाथ पकड़े हुए पूछा- ‘श्रीपाद! कल गुरुपूर्णिमा है, व्यासपूजन के निमित्त कौन-सा स्थान उपयुक्त होगा?’ नित्यानन्दप्रभु ने श्रीवास पण्डित के पूजा-गृह की ओर संकेत करते हुए कहा- ‘क्या इस स्थान में व्यासपूजन नहीं हो सकता?’ हँसते हुए गौरांग ने कहा- ‘हाँ, ठीक तो है, आचार्य तो श्रीवास पण्डित ही हैं, इन्हीं का तो पूजन करना है। बस ठीक रहा, अब पण्डित जी ही सब सामग्री जुटावेंगे। इन्हीं पर पूजा के उत्सव का सम्पूर्ण भार रहा।’ प्रसन्नता प्रकट करते हुए पण्डित श्रीवास जी ने कहा- ‘भार की क्या बात है, पूजन की सामग्री घर में उपस्थित है। केला, आम्र, पल्लव, पुष्प, फल और समिधादि आवश्यकीय वस्तुएँ आज ही मँगवा ली जायँगी। इनके अतिरिक्त और जिन वस्तुओं की आवश्यकता हो उन्हें आप बता दें। प्रभु ने कहा- ‘अब हम क्या बतावें, आप स्वयं आचार्य हैं, सब समझ-बूझकर जुटा लीजियेगा। चलिये, बहुत समय व्यतीत हो गया, अब गंगास्नान कर आवें।’ इतना सुनते ही श्रीवास, मुरारी, गदाधर आदि सभी भक्त निमाई और निताई के सहित गंगास्नान के निमित्त चल दिये। नित्यानन्द जी का स्वभाव बिलकुल छोटे बालकों का-सा था, वे कुदक-कुदककर रास्ते में चलते। गंगा जी में घुस गये तो फिर निकलना सीखे ही नहीं, घंटों जल में ही गोते लगाते रहते। कभी उलटे होकर बहुत दूर तक प्रवाह में ही बहते चले जाते। सब भक्तों के सहित वे भी स्नान करने लगे। सहसा उसी समय एक नाग इन्हें जल में दिखायी दिया। जल्दी से आप उसे ही पकड़ने के लिये दौड़े। यह देखकर श्रीवास पण्डित ‘हाय, हाय’ करके चिल्लाने लगे, किंतु ये किसी की कब सुनने वाले थे, आगे बढ़े ही चले जाते थे। जब श्रीवास के कहने से स्वयं गौरांग ने इन्हें आवाज दी, तब कहीं जाकर ये लौटे। इनके सभी काम अजीब ही होते थे, इससे पहली ही रात्रि में इन्होंने न जाने क्या सोचकर अपने दण्ड-कमण्डलु आदि सभी को तोड़-फोड़ डाला। प्रभु ने इसका कारण पूछा तो ये चुप हो गये। तब प्रभु ने उन्हें बड़े आदर से बीन-बीनकर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया। |