श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी49. व्यासपूजा
व्यासपूर्णिमा के दिन सभी भक्त स्नान, सन्ध्या-वन्दन करके श्रीवास पण्डित के घर आये। पण्डित जी ने आज अपने पूजा-गृह को खूब सजा रखा था। स्थान-स्थान पर बन्दनबार बँधे हुए थे। द्वार पर कदली-स्तम्भ बड़े ही भले मालूम पड़ते थे। सम्पूर्ण घर गौ के गोबर से लिपा हुआ था, उस पर एक सुन्दर बिछौना बिछा था, सभी भक्त आकर व्यासपीठ के सम्मुख बैठ गये। एक ऊँचे स्थान पर छोटी-सी चौकी रखकर उस पर व्यासपीठ बनायी हुई थी, व्यासजी की सुन्दर मूर्ति उस पर विराजमान थी। सामने पूजा की सभी सामग्री रखी थी, कई थालों में सुन्दर अमनिया किये हुए फल रखे थे, एक ओर घर की बनी हुई मिठाइयाँ रखी थीं। एक थाली में अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, पूगीफल, पुष्पमाला तथा अन्य सभी पूजन की सामग्री सुशोभित हो रही थी। पीठ के दायीं ओर आचार्य का आसन बिछा हुआ था। भक्तों के आग्रह करने पर पूजा की पद्धति को हाथ में लिये हुए श्रीवास पण्डित आचार्य के आसन पर विराजमान हुए। भक्तों ने विधिवत व्यासजी का पूजन किया। अब नित्यानन्दप्रभु की बारी आयी। वे श्रीवासजी के कहने से पूजा करने लगे। श्रीवास पण्डित ने एक सुन्दर-सी माला नित्यानन्द जी के हाथ में देते हुए कहा- ‘श्रीपाद! इसे व्यास जी को पहनाइये।’ श्रीवासजी के इतना कहने पर भी नित्यानन्दजी ने माला व्यासदेव जी को नहीं पहनायी, वे उसे हाथ में ही लिये हुए चुपचाप खड़े रहे। इस पर फिर श्रीवास पण्डित ने जरा जोर से कहा- ‘श्रीपाद आप खड़े क्यों हैं, माला पहनाते क्यों नहीं?’ जिस प्रकार कोई पत्थर की मूर्ति खड़ी रहती है उसी प्रकार माला हाथ में लिये नित्यानन्द जी ज्यों-के-त्यों ही खड़े रहे, मानो उन्होंने कुछ सुना ही नहीं। तब तो श्रीवास पण्डित घबड़ाये, उन्होंने समझा नित्यानन्द जी हमारी बात तो मानेंगे नहीं, यदि प्रभु आकर इन्हें समझावेंगे तो जरूर मान जायँगे। प्रभु उस समय दूसरी ओर बैठे हुए थे, श्रीवास जी ने प्रभु को बुलाकर कहा- ‘प्रभो! नित्यानन्द जी व्यासदेव को माला नहीं पहनाते, आप इनसे कह दीजिये माला पहना दें, देरी हो रही है।’ यह सुनकर प्रभु ने कुछ आज्ञा के-से स्वर में नित्यानन्द जी से कहा- ‘श्रीपाद! व्यासदेव जी को माला पहनाते क्यों नहीं? देखो, देर हो रही है, सभी भक्त तुम्हारी ही प्रतीक्षा में बैठे हैं, जल्दी से पूजन समाप्त करो, फिर संकीर्तन होगा।’ |