श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी4. भक्त-वन्दना
जिन्होंने गुरु के मना करने पर भी सर्वसाधारण के लिये गोपनीय मन्त्र का उपदेश किया, उन विशिष्टाद्वैत के प्रचारक भक्त-वन्दना विष्णु-भक्त भगवान रामानुजाचार्य के चरणों में मेरा प्रणाम है। जिन्होंने लुप्त हुए विष्णु सम्प्रदाय का उद्धार करके पुष्टिमार्ग की स्थापना की, जो गृहस्थ में रहते हुए भी महान विरक्त और आसक्तिरहित बने रहे, जिन्होंने वात्सल्योपासना की मधुरता को दिखाकर अपने को स्वयं गोपवंश का प्रकट किया, जिन्होंने बालक श्रीकृष्ण की अर्चा-पूजा को ही प्रधानता देते हुए सर्वतोभावेन आत्मसमर्पण को ही अन्तिम ध्येय बताया, उन शुद्धाद्वैत के प्रचारक बालकृष्णोपासक भगवान वल्लभाचार्य के चरणों में मेरी प्रीति हो। जिन्होंने श्रीराधा कृष्ण की उपासना को ही सर्वस्व सिद्ध किया, जिन्होंने नीम के पेड़ में अर्क (सूर्य) दिखाकर भूखे वैष्णव को भोजन कराया, उन द्वैताद्वैतमत प्रवर्तक, मधुर भाव के उपासक भगवान निम्बार्काचार्य के चरणों में मेरा प्रणाम है। जिन्होंने वृन्दावनविहारी की प्रीति को ही एकमात्र साध्य माना है, जिन्होंने अत्यन्त परिश्रम करके स्वयं हिमालय पर जाकर वेदव्यास जी से ज्ञात प्राप्त किया और वेदान्तसूत्रों पर भाष्य रचा, उन द्वैतमत के प्रवर्तक भगवान मध्वाचार्य आनन्दतीर्थ के पादपद्मों में मेरा बार-बार प्रणाम है। जिन्होंने छूताछूत और जाति-पाँति का कुछ भी विचार न करके सर्वसाधारण को भक्ति का उपदेश किया, जिनकी कृपा से चमार, नाई, छीपी, मुसलमान सभी जगत्पूज्य बन गये, जिन्होंने वैष्णव-समाज में सीता राम की सेवा-पूजा का प्रचार किया, उन आचार्यप्रवर श्रीरामानन्द स्वामी के चरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाम है। इनके अतिरिक्त दूसरे देशों के अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तक ईसा, मूसा, मुहम्मद आदि जितने आचार्य हुए हैं उन सभी के चरणों में मेरा प्रणाम है। सम्पूर्ण पृथ्वी की धूलि के कणों की गणना चाहे हो भी सके, आकाश के तारे चाहे गिने भी जा सकें, बहुत सम्भव है सम्पूर्ण जीवों के रोमों की गणना की जा सके, किन्तु भक्तों की गणना किसी भी प्रकार नहीं हो सकती। सृष्टि के आदि से अब तक असंख्य भक्त होते आये हैं। उन सबके केवल नामों को ही गणेश जी- जैसे लेखक दिन-रात्रि निरन्तर लिखते रहें तो महाप्रलय के अन्त तक भी नहीं लिख सकते। फिर मुझ-जैसे अल्पज्ञ की तो बात ही क्या है? शिव जी, नारद जी, ब्रह्मा जी, पाण्डव, सनत्कुमार इन भक्तों से लेकर सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग- इन चारों युगों में, 18 मन्वन्तरों में, असंख्यों कल्पों में जितने भक्त हुए हैं, उन सभी के चरणों में मेरा प्रणाम है, जिन्होंने सत्ययुग में कपिलरूप से भगवान का दर्शन किया है उन भगवत-भक्तों के चरणों में मेरा प्रणाम है। जिन्होंने त्रेता में रामरूप से भगवान का दर्शन किया है उन राम-भक्तों के चरणों की मैं वन्दना करता हूँ। जिन्होंने व्यासरूप से द्वापर में भगवान के दर्शन किये हैं उन भक्तों के चरणों में मेरा प्रणाम है। |