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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 165-168
मार्ग में उन्हें कुछ ब्राह्मण मिले। उन्होंने बताया कि राजा द्रुपद के यहाँ उसी देव-महोत्सव के अवसर पर उनकी पुत्री द्रौपदी का स्वयंवर भी आयोजित किया गया है। पाण्डव स्वयंवर देखने की लालसा से वहाँ पहुँचे। वहाँ नगर से पूर्व उत्तर दिशा में द्वार और तोरणों से अलंकृत एक समाज-वाट बनाया गया था। पन्द्रह दिन तक नट-नर्तकों की कलाओं के साथ समाज का उत्सव होता रहा। सोलहवें दिन द्रौपदी रंगभूमि में अवतरित हुई। उसके आते ही बाजों का घोष बन्द कर दिया गया। चारों ओर सन्नाटा होने पर धृष्टद्युम्न ने रंगभूमि के बीच खड़े होकर कहा, “यह धनुष है, वह लक्ष्य है, ये बाण हैं। आये हुए सब राजाओं से मैं कहता हूं- जो यन्त्र के छेद में से केवल पांच बाणों की सहायता से लक्ष्य का वेध करेगा और जो कुल, रूप और बल से युक्त होगा, मेरी यह बहन कृष्णा उसकी पत्नी हो जाएगी।” यह कहकर धृष्टद्युम्न ने उपस्थित हुए, सब राजाओं के नाम ले- लेकर द्रौपदी को उनका परिचय दिया। उस स्वयंवर में अनेक जनपदों के राजा उपस्थित हुए थे। गान्धार, मगध, विराट, कलिंग, ताम्रलिप्ती, मद्र, कम्बोज, उशीनगर, वृष्णि, सिन्धु, बाह्लीक, वत्स, कोशल आदि जनपदों के नाम इस प्रसंग में आये हैं। रंगभूमि में उपस्थित क्षत्रियों ने उस धनुष को चढ़ाने का प्रयास किया, किन्तु सफल न हुए। तब कुन्तीपुत्र अर्जुन, जो ब्राह्मणों के बीच में बैठे थे, उठे और धनुष के समीप आये। उन्होंने धनुष की परिक्रमा कर उसे प्रणाम किया और प्रसन्न मन से उसे हाथ में लेकर क्षणभर में सज्जित कर दिया, और पांच बाण लेकर यन्त्र के छिद्र से लक्ष्य को वेध दिया। समाज के बीच महान ध्वनि फैल गई। लोग हर्ष से वस्त्रों को उछालने लगे। अनेक प्रकार के बाजे बजने लगे। सूत और मागध स्तुति करने लगे। यह सब देखकर राजा द्रुपद मन में प्रसन्न हुए। साथ ही उन्होंने देखा कि उपस्थित क्षत्रियों में बड़ी खलबली मच रही है। इस भय से कि अर्जुन को कोई हानि न पहुँचाए, उन्होंने अपने सैनिकों की सहायता देनी चाही, किन्तु उस भभ्भड़ को देखकर युधिष्ठिर ने यही उचित समझा कि शीघ्र ही वहाँ से हटकर अपने आवास पर चले जायं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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