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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 257-276
37. रामोपाख्यान
यह सुनते ही सुग्रीव समझ गया कि वे काम पूरा करके लौटे हैं। कृतार्थ सेवक ही ऐसी चेष्टा करते हैं। इतने में ही हनुमान भी वहाँ आ पहुँचे और सूचना दी, ‘‘हम सीता को देख आये। समुद्र के पार रावण की लंकापुरी में वह हैं।’’ हनुमान ने अपनी लंका-यात्रा का वृत्तान्त स्वयं अपने मुख से वर्णन किया है, पर रामायण में स्वयं कवि ने ही यथास्थान उसका उल्लेख किया है। राम ने प्रसन्न होकर हनुमान की अर्चना की। तब सुग्रीव की आज्ञा से वानरों की अपरिमित सेना वहाँ एकत्र हुई और समुद्र के तट पर आई। राम ने सुग्रीव से कहा कि दुस्तर समुद्र पार करने का क्या उपाय हो सकता है। हमारे पास नावें नहीं हैं। सेना बहुत है। हम व्यापारियों से उनकी नावें छीनकर उन्हें कष्ट देना नहीं चाहते। अतएव मैं समुद्र से ही कुछ उपाय पूछूंगा। तब रामचन्द्र उपवास करके सो गए। समुद्र ने स्वप्न में उन्हें दर्शन देकर कहा, ‘‘हे कौशल्या के पुत्र, मैं आपकी क्या सहायता करुँ? मैं भी इक्ष्वाकु वंश से उत्पन्न हूँ।’’ राम ने कहा, ‘‘हम केवल सेना के लिए मार्ग चाहते हैं। यदि ऐसा नहीं करोगे तो अभिमंत्रित बाणों से तुम्हें सुखा दूँगा।’’ समुद्र ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘मैं आपका मार्ग नहीं रोकता और न विघ्न करता हूँ, पर यदि ऐसे ही मार्ग दे दूँगा तो और लोग मुझे धमकाकर आज्ञा देंगे। सो एक उपाय है। आपके यहाँ जो नल नाम का वानर है वह जिस शिला या काष्ठ को छू देगा उसे मैं अपने ऊपर धारण करूंगा और वही सेतु का काम देगा।’’ समुद्र के अदृश्य हो जाने पर राम ने नल से सेतु बांधने को कहा। ऐसा ही किया गया और वह सेतु नल-सेतु नाम से विख्यात हुआ। कथा के इस रूप में राम को बाण चलाकर समुद्र को क्षुब्ध करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उसी समय विभीषण उनसे मिलने आया। राम ने पूछताछ करने के बाद तुष्ट होकर उसे अपने पास रख लिया और लंका के राज्य का अभिषेक भी कर दिया। विभीषण के कहने से राम ने समुद्र के पार लंका उद्यानों में सेना का डेरा डाला। वहीं से उन्होंने अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजा। रावण की आज्ञा से उसे लंका में प्रवेश करने दिया गया। उसने मंत्रियों के बीच में बैठे हुए रावण को राम का सन्देश सुनाया, ‘‘सीता के अपहरण में तुम अकेले अपराधी हो। उस कारण से व्यर्थ ही औरों का वध होगा। तुम सीता को छोड़ दो, अन्यथा इस लोक को तीक्ष्ण बाणों से राक्षसहीन बना दूँगा।’’ ऐसे कठोर वचन रावण न सह सका और उसने संकेत किया। तुरन्त चार राक्षसों ने अंगद को कसकर पकड़ लिया, किन्तु अंगद वेग से आकाश में उछले और छूटकर राम के पास आ गए। तब राम ने समस्त सैन्य बल से लंका पर चढ़ाई कर दी। लंका में अनेक प्रकार से युद्ध हुआ, जिसका रामोपाख्यान में कुछ विस्तार से वर्णन है। इसके अनुसार कुम्भकर्ण का वध राम ने नहीं, लक्ष्मण ने किया। यहाँ लक्ष्मण के शक्ति लगने का वृत्तान्त नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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