विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 50-58
72. राजधर्म का सार
तब सबने ओघवती नदी के किनारे भीष्म को शरशैय्या पर पड़े हुए देखा कृष्ण उन्हें इस अवस्था में देखकर खिन्न हुए और उन्होंने कहा, “हे शान्तनुपुत्र, आपका शरीर और मन कैसा है? एक कांटे के चुभने से शरीर को व्यथा होती है, फिर आप तो बाणों की शय्या पर पड़े हैं, किन्तु अपने तप और ब्रह्मचर्य की शक्ति से आप यह घोर कष्ट भी सहने में समर्थ हैं। ये युधिष्ठिर आपके पास आए हैं। इनका मन शोक से दुःखी है। आप चार वर्ण, चार आश्रम, चार वेद, चातुर्होत्र, सांख्य, योग, इतिहास, पुराण और धर्मशास्त्र इन सब विषयों के जानने वाले हैं। कृपया युधिष्ठिर को उपदेश दीजिए।[1] कृष्ण ने यह भी बताया, “हे भीष्म, आपके जीवित रहने के 56 दिन शेष हैं, क्योंकि सूर्य जैसे ही उत्तरायण होंगे आप यह शरीर छोड़ देंगे। अतः धर्म और अर्थयुक्त अपनी सारवान् वाणी से युधिष्ठिर को उपदेश दीजिए। [2] इसके उत्तर में भीष्म ने एकदम सच बात कही, “हे कृष्ण, शल्यपीड़ा से मेरा मन और शरीर दोनों दुःखी हैं। मुझे बड़ी वेदना हो रही है और मझमें तो कोई प्रतिभा भी नहीं है। न मेरी बुद्धि ही इस समय प्रसादगुण से युक्त है। विषाग्नि के समान इन शल्यों की पीड़ा से मेरा बल, मेधा, और प्राण जल रहे हैं। मर्मस्थल परितत्प हो रहे हैं और चित्त घूम रहा है। मेरी वाणी दुर्बलता से बैठी जा रही है। मैं कैसे बोल सकूंगा? आप ही मुझ पर कृपा कीजिये। अतः यदि मैं कुछ कह न पाऊं तो क्षमा कीजियेगा और फिर आपके सामने तो बृहस्पति भी कुछ बोल नहीं पाते। मुझे आकाश, दिशाएं और धरती कुछ नहीं सूझता। केवल आपके ही बल से किसी तरह मेरा शरीर ठहरा है। इसलिए जो युधिष्ठिर के लिए हितकारी हो उसे आप ही कहिये। आप सब आगमों के आगम हैः स्वयमेव प्रभो तस्माद्धर्मराजस्य यद्धितम्। आपके होते हुए मेरा कुछ कहना ऐसे है जैसे गुरु के सामने शिष्य का।” भीष्म के ऐसे विनीत और सत्य वचन पढ़कर आंखों में आंसू आ जाते हैं। क्या इसकी कल्पना नहीं होती कि उनकी जन्म भर की साधना कैसी थी? भारतीय राजशास्त्र, धर्म और दर्शन का पूरा ज्ञान रखते हुए भी उनका विनय-भाव कितना बढ़ा चढ़ा था? कृष्ण ने उत्तर में कहा, “कौरवों में धुरन्धर, आपका ऐसा कहना ठीक ही है। हे भीष्म, मेरे प्रसाद से आपको न ग्लालि रहेगी, न मूर्छा और न दाह रहेगी, न पीड़ा। भूख और प्यास भी आपको कष्ट न देगी। और सब ज्ञान आपको प्रतिभासित हो जायंगे।” इस वार्तालाप में संध्या हो गई और सब लोग यह कहकर वहाँ से चले आये कि हम लोग कल आपके दर्शन करेंगे।[4] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज