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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 70-150
48. भगवद्यान पर्व
जैसे कौरवों की ओर से प्रमुख व्यक्ति के रूप में संजय पाण्डवों के यहाँ आए थे, वैसे ही अब दूसरे पक्ष से किसी विशिष्ट प्रतिनिधि के भेजे जाने की बारी थी। वस्तुतः संजय के भेजने में धृतराष्ट्र के मन में कोई निश्चित लक्ष्य न था। उसने गोलमोल बात कही थी कि हे संजय! जाकर कुशल-प्रश्न पूछना और ऐसा प्रयत्न करना कि युद्ध न हो। संजय उपप्लव में पाण्डवों से मिले। लम्बी-चौड़ी बातचीत की और उनके लौटने पर कौरवों की सभा में जो भाँति-भाँति के मोड़-मुड़क से भरा हुआ लम्बा संवाद हुआ, उसे हम केवल दोनों पक्षों के नेताओं के मनोभाव का वैज्ञानिक विश्लेषण कह सकते हैं। ज्ञात होता है कि फोड़ा दोनों तरफ काफी पक चुका था। युद्ध की टक्कर निकट आ रही थी, पर उससे पहले कृष्ण जैसे बुद्धिमान व्यक्ति ने युद्ध टालने का एक सच्चा प्रयत्न और किया। कृष्ण जानते थे कि युद्ध होकर रहेगा। पर नीति की बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। अतएव वे शान्ति का संदेश लेकर कौरवों की राजसभा में आये। अध्याय 72 से 150 तक का लम्बा प्रकरण भगवद्यान पर्व कहलाता है, जिसका सम्बन्ध धृतराष्ट्र की सभा में कृष्ण के उपस्थित होने, अपना संदेश कहने, फिर पाण्डवों के पास लौटकर वहाँ की परिस्थिति रखकर विचार-विमर्श करने से है। इसी के पेट में कई छोटे चरित्र भी आ गए हैं। पहला गालव चरित है।[1] दूसरा कर्ण के साथ कृष्ण और कुन्ती का गुप्त संवाद है।[2] इसी से पूर्व जब कृष्ण लौट रहे थे तो कुन्ती ने पाण्डवों के लिए अपना संदेश देते हुए विदुला और उसके पुत्र के संवाद रूप में एक महत्त्वपूर्ण आख्यान सुनाया था।[3] इस प्रकार पहले की अपेक्षा इस पर्व का यह अंश घटनाओं के अधिक उदात्त धरातल से हमारा परिचय कराता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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