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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 102-137
8. कौरव-पाण्डवों का बाल्यकाल
धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर इन तीनों कुमारों के जन्म लेने पर पृथ्वी में नए प्रकार का जन-मंगल प्रारम्भ हुआ। कुरु-जनपद, कुरु-जांगल और कुरु-क्षेत्र, इन तीन भौगोलिक भागों में बटे हुए भू-प्रदेश का संवर्द्धन हुआ। कुरु-क्षत्रियों ने अपने जनपद में अनेक कूप, आराम, सभा, वापी और ब्राह्मणों के निवास के लिए आवसथ आदि का निर्माण किया। भीष्म के द्वारा शास्त्रानुकूल राज्य की रक्षा होने पर वह जनपद सब ओर से रमणीय हो उठा। उसमें सैकड़ों चैत्य वृक्ष और यज्ञिय यूप प्रतिष्ठापित हुए। राष्ट्र में धर्मचक्र-व्याप्त हो गया। पौर-जानपद लोगों में निरन्तर उत्सव होने लगे। कुरु-मुख्य क्षत्रियों के घरों में एवं पुरवासियों के आवासों में ‘दान लीजिए’, ‘भोजन कीजिए’ इस प्रकार का घोष सब ओर सुनाई पड़ने लगा। वणिक और शिल्पी आकर नगर में भर गए। अनेक द्वार, तोरण और प्रासादों से वह पुरी अमरावती के समान सुशोभित हुई। भीष्म ने जन्म से तीनों कुमारों का परिपालन किया और ब्रह्मचर्यव्रत एवं अध्ययन सम्बन्धी संस्कार यथासमय किये। धनुर्वेद, घोड़े की सवारी, गजशिक्षा, गदायुद्ध, ढाल-तलवार का कौशल, नीतिशास्त्र, इतिहास-पुराण, वेद-वेदांग और अन्य शिक्षाएं उनके अध्ययन के अन्तर्गत थीं। यथाविधि शारीरिक श्रम और व्यायाम का भी उन्हें अभ्यास कराया गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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