विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 3
3. जनमेजय का नाग-यज्ञ
अठारह पर्वों वाले महाभारत के पहले पर्व का नाम आदि-पर्व है। उसमें 218 अध्याय और 7,984 श्लोक हैं। पहले दो अध्यायों में प्रस्तावना रूप में महाभारत की रचना और उसकी विषय-सूची का तीन प्रकार से वर्णन करने के बाद तीसरे अध्याय से पौष्य-पर्व आरम्भ होता है, जो भाषा और शैली की दृष्टि से महाभारत के सबसे विलक्षण अध्यायों में से है। यह पर्व गद्य-शैली में लिखा हुआ है। बीच-बीच में लगभग 15 वैदिक शैली के छन्द भी हैं। अवश्य ही यह सूत्रकालीन चरण-साहित्य का एक टुकड़ा है, जो महाभारत की मूल कथा के साथ सम्बन्धित न होते हुए भी किसी प्रकार ग्रन्थ के आरम्भ में ही जुड़ गया। पौष्य-पर्व की कथा इस प्रकार हैः पौष्य-पर्व की कथा
परीक्षित जनमेजय भाइयों के साथ कुरुक्षेत्र में दीर्घसत्र यज्ञ करता था उसे देवशुनी सरमा ने भावी अनिष्टसूचक शाप दिया। सत्र समाप्त होने पर जनमेजय हस्तिनापुर लौट आया, किन्तु उसे उस अनिष्ट से बचने की चिन्ता बनी रही। एक बार राजा मृगया के लिए वन में गया हुआ था। वहाँ उसने सोमश्रवा ऋषि को अपना पुरोहित वरण किया और उसके साथ राजधानी में लौटा। तब राज्य का भार भाइयों को सौंपकर जनमेजय ने तक्षशिला पर चढ़ाई की और उस देश को वश में किया। इस चलती हुई कथा के बीच में ही धौम्य ऋषि की कहानी आ जाती है। आयोद धौम्य के आरुणि, उपमन्यु और वेद नामक तीन शिष्य थे। गुरु ने क्रमशः तीनों शिष्यों को परीक्षा की कसौटी पर कसा। तीनों ही खरे उतरे। आरुणि को एक खेत की मेंड़ बांधने भेजा। उसने मेंड़ के स्थान पर स्वयं लेट कर बहते हुए पानी को रोका, जिससे गुरु प्रसन्न हुए। यही आरुणि पीछे चलकर पंचाल देश के महाविद्वान दार्शनिक उद्दालक आरुणि हुए, जिनका उपनिषदों में उल्लेख आता है। उपमन्यु को गाय चराने पर नियुक्त किया और उपाध्याय धौम्य ने ऐसी कड़ाई बरती कि शिष्य को कुछ खाने को न मिले। ऐसी अवस्था में आक के पत्ते खाकर जीवित रहने से उपमन्यु दोनों नेत्रों से अन्धा हो गया और वह कुएं में गिर गया। वहीं उसने वैदिक ऋचाओं से देवों के वैद्य अश्विनीकुमारों की स्तुति की, जिससे उन्होंने प्रसन्न होकर उसे फिर चक्षुष्मान किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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