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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 50-78
24. नलोपाख्यान
बृहदश्व ऋषि का स्वागत-सत्कार करके युधिष्ठिर ने उनसे अपना सब दुखड़ा सुनाया, “भगवन, अक्षद्यूत में मेरा राज्य और धन चला गया। बेईमान जुआरियों ने मुझे बुलाकर ठग लिया। मेरी प्यारी भार्या को वे सभा में खींच लाये। मेरे-जैसा भाग का पोच और कोई राजा आपने देखा या सुना है? मैं तो समझता हूँ कि मुझसे बढ़कर दुखियारा और कोई नहीं है।” यह सुनकर बृहदश्व ऋषि ने कहा, “महाराज, आपसे भी अधिक दुखिया एक राजा था। निषध देश में वीरसेन राजा के नल नाम का पुत्र था। वह बड़ा धर्मात्मा था, किन्तु सुना है कि उसको भी पुष्कर ने छल से ठग लिया था। वह भी अपनी पत्नी के साथ दुःख सहता हुआ वन में रहा। हाथी, घोड़े, भाई-बन्धु, कोई भी उसके साथ नहीं रहा। आपके पास तो आपके देवकल्प वीर भाई हैं और अनेक ब्रह्मकल्प ब्राह्मण हैं। अतएव आप का शोक करना उचित नहीं।” संक्षेप में नल की कथा इतनी ही थी, किन्तु महाभारत के शतसाहस्री संहिता वाले अन्तिम संस्करण में कथा का वह मूल बीज नलोपाख्यान नामक सुन्दर काव्य के रूप में विकसित हुआ। भाषा और कथा-प्रवाह दोनों की दृष्टि से नलोपख्यान महाभारत का अत्यन्त उत्कृष्ट अंश है। यूरोप की अनेक भाषाओं में पृथक रूप से इसके अनुवाद हो चुके हैं। मानवीय दुःख-सुख के मार्मिक स्थलों से भरे हुए कितने ही स्थल इस कथा में आते हैं। ज्ञात होता है, प्राचीन नियतिवादी दार्शनिक के तरकश का एक अचूक बाण यह नलोपाख्यान था, जिसमें बड़े-बड़ों को चक्कर में डाल देने वाले भाग्य की करतूत का प्रभावशाली दृष्टान्त पाया जाता है। युधिष्ठिर ने कहा, “भगवन! मैं महात्मा नल के चरित्र को विस्तार से सुनना चाहता हूँ। कृपा कर कहिए।” बृहदश्व ऋषि बोलेः वीरसेन राजा का पुत्र नल अत्यन्त बलवान, रूपवान, गुणवान और अश्वविद्या में चतुर था। वह निषध देश का राजा था। उसे पासों से खेलने का शौक था। उसी प्रकार विदर्भ जनपद में भीम नाम का राजा था। उसके दमयन्ती नाम की कन्या तथा दम, दान्त और दमन नाम के तीन पुत्र थे। दमयन्ती रूप, तेज, श्री और सौभाग्य के कारण लोक में यशस्विनी हुई। देव, यक्ष और मनुष्यों में ऐसी सुन्दरी कोई न थी। नल भी रूप में अद्वितीय था। वह साक्षात कामदेव के समान था। लोगों ने कुतूहलवश दमयन्ती के समीप नल के रूप की प्रशंसा की और नल के समीप दमयन्ती की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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