विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 91-100
7. भीष्म का उदात्त चरित
संभव-पर्व के अवशिष्ट चित्रपट पर हमें एक अमित महिमाशाली विभूति के दर्शन होते हैं। यह महापुरुष बाल ब्रह्मचारी पितामह भीष्म हैं। शान्तनु के पुत्र गांगेय भीष्म महाभारत युग की सभ्यता के उत्कृष्ट प्रतीक हैं। उनका जन्मनाम देवव्रत था, बाद में आजन्म ब्रह्मचर्य-व्रत की कठिन प्रतिज्ञा करने के कारण वह भीष्म नाम से विख्यात हुए। भीष्म का चरित गाम्भीर्य में समुद्र के तुल्य और उच्चता में हिमवान के समान है। अगाध पांडित्य, अतुलित शरीर बल एवं बहुमुखी प्रज्ञा, जो उस युग की विशेषताएं थीं, इनकी साकार मूर्त्ति भीष्म हैं। वह नानाविध लोक्य धर्मों के भंडार थे; युद्ध की कलाओं में पारंगत और शांति धर्म की युक्तियों में परिनिष्णात थे। राजनीति और दंडनीति, अध्यात्म और निःश्रेयस से संबंधित जीवन और ज्ञान को कोई पक्ष ऐसा नहीं दीखता, जिसका उत्कृष्ट विकास भीष्म के चरित में न पाया जाता हो। महाभारत की घटनाओं का जो भरा-पूरा चलचित्र है, इसके देवकल्प मानवों में पितामह भीष्म महाहिमवंत के ऊंचे शिखर की भाँति सर्वाभिभावी रूप में दिखाई पड़ते हैं। उनका निर्मल चरित्र समग्र राष्ट्र की अन्तरात्मा में व्याप्त हो गया है। यद्यपि आजन्म ब्रह्मचारी होने के कारण उनका अपना वंश नहीं चला, तथापि प्राचीन भारतीय श्राद्ध-विधि के अनुसार सब व्यक्ति पितामह भीष्म के प्रति शाश्वत श्रद्धा अर्पित करते हैं, मानो वे सबके ही पूर्व पुरुष बन गए हों। भारतीय संस्कृति में जल सुन्दरता, पवित्रता और सत्यता का प्रतीक है। इन तीन गुणों से युक्त भीष्म के लिए हम सब अपनी सांवत्सरिक जलांजलि अर्पित करते हैं। महाभारत-युग में भी भीष्म के समान दूसरा कोई ज्ञानी न था। शांति-पर्व और अनुशासन-पर्व के राजधर्म और मोक्ष-धर्मों से सम्बन्ध रखने वाले संवाद महामहिम भीष्म की विशाल प्रज्ञा के अमर कीर्त्तिस्तम्भ हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज