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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 157-177
31. आजगर पर्व
हिमालय से विदा लेते हुए पाण्डवों की कथा के पुछल्ले के रूप में आजगर पर्व की कथा संक्षेप में इस प्रकार है: अर्जुन के साथ चार वर्ष तक पाण्डवों ने कुबेर के चैत्ररथ वन में निवास किया। उससे पूर्व उनके वनवास-काल के छह वर्ष बीत चुके थे।[1] ग्यारहवें वर्ष में भीम ने युधिष्ठिर को स्मरण दिलाया कि अब आप दुर्योधन से निपटने के लिए अपना यह अज्ञातवास छोड़कर लौटिए। युधिष्ठिर ने अन्य भाइयों का भी वैसा ही मत जानकर कुबेर के सुन्दरवन को और पर्वत की उन देव-भूमियों को प्रणाम किया, और यह मानता मानी कि हे शैलेन्द्र, जब मैं अपने शत्रुओं को जीतकर पुनः राज्य प्राप्त कर लूँगा, तब यहाँ तप करने के लिए आऊँगा। फिर जिस मार्ग से आये थे, सब उसी ओर से लौटने लगे। इस अवसर पर लोमश ऋषि उनसे विदा होकर स्वर्ग चले गए। इन शब्दों के पीछे यह संभावना है कि लोमश ऋषि का हिमालय में ही देहावसान हो गया। मार्ग में एक रात वृषपर्वा के आश्रम में बिताकर कई देशों को पारकर वे कुणिन्द के राज्यों में यामुन पर्वत पर आकर एक वर्ष रहे। यहाँ इन्द्रसेन आदि परिचायक और उनके रसोइये, सवारियाँ आदि सब उनसे पुनः मिले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 173।5
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