विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 257-273
37. रामोपाख्यान
जैसे युधिष्ठिर ने पहले बृहदस्व ऋषि से पूछा था कि क्या मुझसे भी अधिक दुःखी और भाग्यहीन कोई राजा हुआ है और उसके उत्तर में ऋषि ने जुए से विपत्ति में पड़ने वाले राजा नल की कथा सुनाई थी, वैसे ही द्रौपदी-हरण के दुःख से दुःखी युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय से इसी तरह का प्रश्न किया और इसके उत्तर में ऋषि ने राम का उपाख्यान सुनाया, जिन्हें वनवास और सीताहरण का दुःख देखना पड़ा था। महाभारत के रामोपाख्यान और वाल्मीकि की रामायण का क्या सम्बन्ध है, इस विषय में दो मत हैंं। याकोबी का कहना था कि रामोपाख्यान बाल्मीकि की रामायण का संक्षिप्त रूप है। हाप्किन्स दोनों के स्रोत पृथक मानते थे। बेबर ने सर्वप्रथम 1870 में इस प्रश्न पर विचार आरम्भ किया था, पर निश्चित मत प्रकट नहीं किया। महाभारत के यशस्वी सम्पादक श्री सुकथनकर का निष्कर्ष है कि जहाँ-तहाँ कुछ कथा-भेद होते हुए भी दोनों में ऐसा पक्का शब्दसाम्य है (जिसके 86 उदाहरण उन्होंने दिये हैं) कि रामोपाख्यान की रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर हुई माननी पड़ती है। रामोपाख्यान में 18 अध्याय और लगभग 700 श्लोक हैं। कथा का अधिकांश भाग वही है, जो वाल्मीकि में है। रामोपाख्यान में पुत्रेष्टि यज्ञ का उल्लेख नहीं है। जनक पुत्री सीता को अयोनिजा नहीं कहा गया। अयोध्या काण्ड की कथा में कैकेयी को राजा ने केवल एक वर दिया है। उसी से उसने भरत के लिए राज्य और राम के लिए वनवास मांग लिया है। कैकेयी की दासी मंथरा को दुन्दुभी नामक गन्धर्वी का अवतार कहा गया है। स्वयं ब्रह्मा ने मंथरा को उसके कर्त्तव्य के विषय में लिखा-पढ़ाकर मर्त्यलोक में भेजा था। मंथरा ने कैकेयी को सावधान करते हुए कहा, ‘‘आज राजा ने तुम्हारे लिए बड़े दुर्भाग्य की घोषणा की है। चण्ड सर्प क्रोधित होकर तुम्हें डसना चाहता है। कौशल्या भाग्यशालिनी है, जिसके पुत्र का अभिषेक होगा।’’ मन्थरा के वचन सुनकर कैकेयी ने मन में अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया। किन्तु रामायण की तरह वह कोपभवन में नहीं जाती। वह और भी अधिक श्रृंगार करके हँसती हुई पति से एकान्त मिलती है और प्रेम प्रकट करती हुई मधुर वाक्य कहती है, ‘‘हे सत्यप्रतिज्ञ, आपने जो मुझे एक इच्छा-वर देने को कहा था, आज उसे पूरा करो।’’ उत्तर में राजा ने कहा, ‘‘तुम्हें वर देता हूँ, जो इच्छा हो मांग लो। किस अवध्य को मैं आज वध्य बना दूँ और किस वध्य को आज मुक्त कर दूँ? किसे कब धन में डालूँ और किसका सर्वस्व छीन लूँ?’’ यहाँ पूर्वापर में कुछ असामंजस्य अवश्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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