विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 190-194
10. सुभद्रा-परिणय
धृतराष्ट्र के गुप्तचरों ने सब हाल जानकर यह समाचार दिया कि जिसने लक्ष्यवेध किया था, वह धनुर्धर अर्जुन था और वे ब्राह्मण जो स्वयंवर में आये थे, पाण्डव ही थे। पाण्डवों के हितैषी राजा इस समाचार के फैलने से प्रसन्न हुए और उन्होंने समझा कि पाण्डवों का पुनर्जन्म हुआ। किन्तु राजा दुर्योधन और उसके भाई, अश्वत्थामा, शकुनि, कर्ण, कृपाचार्य तथा दुःशासन सब बड़े दुःखी हुए। पाण्डवों की समृद्धि देखकर वे मुरझा गए। पाण्डवों की कुशल का यह हाल जब विदुर को ज्ञात हुआ तब उन्होंने धृतराष्ट्र से सब समाचार कहा। धृतराष्ट्र ने ऊपर से बहुत प्रसन्नता प्रकट की और कहा, “जैसे वे पाण्डु के पुत्र हैं, वैसे ही मुझे भी प्रिय हैं। मैं उनकी इस वृद्धि से प्रसन्न हूँ कि द्रुपद के साथ उनका सम्बन्ध हुआ है। द्रुपद को अपना मित्र पाकर कौन पुनः श्रीसम्पन्न न हो जायगा?” उनकी यह बात सुनकर विदुर ने उत्तर दिया, “हे राजन, पाण्डवों के विषय में आपकी यह बुद्धि सदा ऐसी ही बनी रहे।” तब दुर्योधन और कर्ण दोनों धृतराष्ट्र के समीप गए और बोले, “हे राजन, विदुर के सामने हम कुछ नहीं कह सकते। आपकी यह क्या चिन्ता है, जो सपत्नों की वृद्धि को अपनी वृद्धि मानते हैं? आपको करना कुछ चाहिए और करते कुछ हैं। हे तात, हमें तो पाण्डवों के बल का क्षय करने की बात सोचनी चाहिए।” धृतराष्ट्र ने कहा, “सोचता तो मैं भी यही हूं, जैसा तुम कहते हो, लेकिन विदुर के सामने अपनी बात साफ-साफ नहीं कह सकता। इसलिए उनके गुणों का ही कीर्तन करता हूं, जिससे विदुर मेरे असली अभिप्राय को जानने न पावें। इस समय तुम जो ठीक समझते हो, बताओ, और हे कर्ण, तुम भी जो इस समय कर्तव्य-कर्म हो, उसका सुझाव दो।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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