विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 295-299
40. यक्ष-युधिष्ठिर-प्रश्नोत्तरी
आरण्यक पर्व के महान कथा-समुद्र की अन्तिम हिलोर के रूप मे यक्ष प्रश्न नामक एक अद्भुत प्रकरण सुरक्षित रह गया है। इस यक्ष-युधिष्ठिर-संवाद के अंत में फलश्रुति दी हुई है।,[1] जो इस बात का संकेत है कि यह प्रकरण महाभारत का मौलिक अंग न थी, कहीं से जोड़ा गया। जिस स्रोत से यह लिया गया, वह लोक-साहित्य और वेद-साहित्य का संमिश्रण था, जैसा कि इसमें आये हुए दो प्रकार के प्रश्नों से प्रकट होता है। उदाहरण के लिए यज्ञिय साम क्या है? ‘प्राण याज्ञिय साम है’ यह वैदिक धरातल से आया हुआ प्रश्नोत्तर है। अथवा ‘किं स्विदेको विचरति’[2] तो यजुर्वेद का ‘कः स्विदेका की चरति’ मंत्र ही है। निश्चय ही इनका स्रोत वैदिक ब्रह्मोद्य या ब्रह्म-विषयक प्रश्नोत्तरमयी चर्चाएं थीं। दूसरा विभाग लोक-साहित्य की धारा का है, जैसे कि ‘किं स्वित् सुप्तं न निमिषतिं’ (कौन सोता हुआ पलक नहीं मारता?) और उत्तर में ‘मत्स्यः सुप्तो न निमिषति’[3], यह लोक-साहित्य से लिया गया अंश है। प्राचीनकाल में यक्ष-पूजा का बहुत प्रचार था। उसका आवश्यक अंग प्रश्नोत्तर या प्रश्न बूझना था। ऐसे ही वेदकालीन या वैदिक ब्रह्मोद्य चर्चाओं में भी प्रश्नोत्तर पूछे जाते थे। अश्वमेधीय कर्मकाण्ड के अन्तर्गत ‘कः स्विदेका की चरित’[4] इत्यादि 18 मंत्रों को ब्रह्मोद्य कहा गया है। ऋग्वेद में इसी प्रकार के प्रश्नों का एक मंत्र आता है: किं स्विद्वनं क उस वक्ष आस यतो द्यावा पृथ्वी निष्टतक्षुः। मनीषिणो मनसा पच्छतेदु तददध्य तिष्ठद् भुवनानि यारयन।’[5] इन प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार दिया जाता था, ‘ब्रह्म तद्वनं ब्रह्म उस वक्ष आस यतो द्यावापृथ्वी निष्टतक्षुः। मनीषिणो मनसा विब्रवीमि बो ब्रह्माध्यतिष्ठद् भुवनानि धारयन्।।’ इस प्रकार के प्रश्नोत्तरों को ब्रह्मोद्य कहा जाता था। वेद में जो ब्रह्मोद्य शैली थी वही लोक में यक्ष-प्रश्न की शैली थी। ब्रह्म को कालान्तर में यक्ष भी कहा गया। ‘महद्यज्ञं भुवनस्य मध्ये’ मंत्र में यक्ष ब्रह्म का वाचक है। अथर्ववेद[6] के मंत्रो में स्पष्ट ही अपराजिता पुरी में रहने वाले ब्रह्म नामक यक्ष का उल्लेख आया है। यहाँ भी यक्ष को अपराजित कहा गया है। शान्ति पर्व[7] में अपराजिता पुरी को अवध्य ब्रह्मपुर कहा है, जहाँ ब्रह्मपुर का तात्पर्य यक्षपुर ही है, जिसमें राजा (अर्थात यक्ष) सुख से निवास करता है। केनोपनिषद की कथा के अनुसार ब्रह्म ही यक्ष रूप में प्रकट हुआ। लोक और वेद की यह मिलती-जुलती साहित्य-शैली किसी समय एक-दूसरे से घुल-मिल गई, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण महाभारत का यहीं-युधिष्ठिर-संवाद है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 258। 27,28
- ↑ 29, 46
- ↑ मछली सोती हुई पलक नहीं मारती, 297। 42, 43
- ↑ यजुर्वेद 33। 9
- ↑ 10। 81। 4
- ↑ 10। 2। 28, 33
- ↑ मोक्ष धर्म 171 52
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज