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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 168-353
पूर्वजन्म में किये हुए कर्म इस जन्म में फल देते हैं, सुख-दुःख उन्हीं के परिणाम हैं। इसे ही लोक-पर्याय-विधान कहते हैं। पौर्वदेहिक कर्मों से सुख-दुःख का भोग मिलता है। यह भी दृढ़ मान्यता थी कि पूर्वकर्मों का संशोधन अनशन या उपवास से किया जा सकता हैः समुन्नमग्रतो वस्त्रं र्पौच्छुध्यति कर्मणा। उपवास ही ऐसा तप है, जिससे पाप कर्मों का मैल धुल जाता है। 87. सृष्टि और प्रलय
अध्याय 175 में सृष्टि और प्रलय का प्रश्न उठाया गया है। लोकों का निर्माण पद्मसृष्टि से हुआ है। इसी पुष्पक पर बैठकर ब्रह्मा महत् तत्त्व, अहंकार और पंचभूतों की रचना करते हैं। यही वैदिक मत है। इसी प्रसंग में विराट रूप का भी वर्णन किया गया है। इसका आरम्भ ऋग्वेद के पुरुष सूक्त से हुआ है और कालान्तर के साहित्य में अनेक प्रकार से इसका वर्णन पाया जाता है। इसी मत में भूपद्म की कर्णिका से मेरु का विकास बताया गया है, जिसका वर्णन पुराणों में पल्लवित किया गया है। उसके चार तटान्तों से चतुर्विध सृष्टि का जन्म हुआ। अध्याय 176 में पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच तत्त्वों से विश्व की रचना का वर्णन है। इसके मूल में वैदिक समुद्र या सलिलवाद या जलसृष्टि का मत था। इसी से अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी का जन्म हुआ। मनु ने इसी को “अप एक ससर्मादौ” कहा है। रस, गन्ध और स्नहे की योनि तथा प्राणियों की योनि भूमि है। इस पर यह प्रश्न उत्पन्न हुआ कि वृक्षों के स्थावर शरीर में जीव है या नहीं। इसका समाधान यह कहकर किया गया है कि वृक्षों के शरीर में पांचों इन्द्रियों और चैतन्य का विकास होता है। प्राचीन दर्शन का यह महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त था। वृक्षों में जीव है, इसका स्पष्ट उल्लेख यहाँ हुआ है। वृक्ष देखत, सुनते, सांस लेते और खाते-पीते हैं और चेतना के कारण पंचतत्त्वों के प्रभावों से प्रभावित होते हैं। उनके कोशों में जीवनी शक्ति का स्पन्दन है। वे सुख-दुःख को भी ग्रहण करते हैं। अतः उनमे जीव का होना निश्चित हैः ग्रहणात सुखदुःखस्य छिन्न्स्य च विरोहणात्। वे आहार लेकर वृद्धि को प्राप्त होते हैं। उनमें पुष्प, फल और बीज का भी नियम है। उनके शरीर में त्वक्, मांस, अस्थियां, मज्जा और स्नायु इन सबके समूह रूप वृक्षों में तेज, जठराग्नि, क्रोध, चक्षु, ऊष्मा भी होती है। श्रोत्र, घ्राण, मुख, हृदय, कोष्ठ ये वृक्षों में भी हैं, जो आकाश के अंश हैं। श्लेष्मा, कफ, पित्त, स्वेद, वसा, शोण्ति और जल ये वृक्षों के शरीर में भी होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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