विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 257-276
37. रामोपाख्यान
रामायण में केवल एक बार सीता ने हनुमान से अविंध्य का उल्लेख किया है, पर रामोपाख्यान में अविंध्य को विशेष महत्त्व दिया गया है और चार बार उसका उल्लेख आया है। त्रिजटा के इस उल्लेख के अतिरिक्त सीता ने भी हनुमान से अविंध्य के इस सन्देश का उल्लेख किया है। मेघनाद-वध के बाद अविंध्य रावण को रोकता है कि सीता की हत्या मत करो, और जब रावण मारा जाता है तो अविंध्य और विभीषण दोनों सीता को लेकर राम के पास आते हैं। उधर काममोहित रावण अशोक वन में सीता के पास आया, श्मशान में रोपे हुए चैत्य वृक्ष की भाँति अलंकृत होकर भी वह भयंकर लगता था। वह कहने लगा, ‘‘हे सीते! अपने पति का तुम बहुत मान रख चुकीं, अब मुझ पर कृपा करो। मैं विश्रवा मुनि का पुत्र हूँ और पांचवा लोकपाल माना जाता हूँ।’’ यह सुनकर सीता ने उसकी ओर से मुँह फिरा लिया और तृण बीच में रखकर कहने लगीं, ‘‘हे राक्षसराज, मैं अभागी हूँ, जो मुझे तुम्हारे ये वचन सुनने पड़े। तुम्हारे पास सब सुख है। तुम्हारा भला हो। अपने मन को लौटाओ। मैं पतिव्रता हूँ। तुम्हारे लिए मानुषी स्त्री ठीक भी नहीं। तुम्हारे यशस्वी पिता प्रजापति के समान है। तुम लोकपालों के समान धर्म का पालन क्यों नहीं करते?’’ यह सुनकर रावण ने फिर कहा, ‘‘हे सीता, चाहे कामदेव मेरे अंगों को भस्म कर डाले, किन्तु जब तक तुम्हारी इच्छा न होगी, मैं तुम्हारा स्पर्श न करूंगा।’’ यह कहकर वह वहाँ से चला गया। उधर माल्यवान पर्वत पर राम ने जब शरद ऋतु का दर्शन किया तो वे सीता का स्मरण करके कहने लगे, ‘‘हे लक्ष्मण, किष्किन्धा में सुग्रीव के पास जाओ। वह ग्राम्य धर्मों में फंसकर अपनी प्रतिज्ञा भूल गया है। यदि वह ऐसे ही कामसुखों में सोता रहेगा तो उसे भी बाली के मार्ग से जाना होगा। उसे शीघ्र साथ लेकर आओ।’’ लक्ष्मण जैसे ही किष्किन्धा के द्वार पर पहुँचे, सुग्रीव ने उन्हें क्रुद्ध जानकर अपने स्त्री के साथ स्वागत किया और कहने लगा, ‘‘हे लक्ष्मण, मैं कृतघ्न नहीं हूँ। मैंने सीता को ढूँढ़ने के लिए पहले से ही यत्न किया है और वानरों को सब दिशाओं में भेजा है और एक मास में लौटने को कहा है। अभी पाँच दिन बाद महीना पूरा होगा। तब तुम राम के लिए प्रिय समाचार सुनोगे।’’ इससे लक्ष्मण का रोष जाता रहा और सुग्रीव के साथ राम के पास आये और सब समाचार कहा। इतने में ही वानर लौटने लगे। केवल दक्षिण दिशा वाले नहीं आये। राम उनकी प्रतिक्षा में प्राण धारण किये रहे। दो मास में वे भी लौटे और यह सूचना दी, ‘‘बाली का जो बड़ा मधुवन है उसमें हनुमान और अंगदादि फल तोड़कर खा रहे हैं।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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