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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 76
यदि प्रयाग में मुण्डन करके और नैमिषारण्य में उपवास करके मनुष्य दान करे; पुष्कर अथवा बदरिकाश्रम-तीर्थ में उपवास, स्नान, पूजन एवं विग्रह का दर्शन कर ले; बदरिकाश्रम में सिद्धि प्राप्त करके बेर का फल खाय और मेरी प्रतिमा का दर्शन करे; पवित्र वृन्दावन में झूलते हुए मुझ गोविन्द का दर्शन एवं पूजन करे; भाद्रपद मास में मञ्च पर आसीन हुए मुझ मधु सूदन का जो भक्त दर्शन, पूजन एवं नमस्कार करे; कलियुग में यदि मनुष्य रथयात्रा के समय भक्तिभाव से रथारूढ़ जगन्नाथ का दर्शन, पूजन एवं प्रणाम करे; उत्तरायण की संक्रांति को प्रयाग में स्नान कर ले और वहीं मुझ वेणी माधव का पूजन एवं नमन करे; कार्तिक की पूर्णिमा को उपवासपूर्वक मेरी शुभ प्रतिमा का दर्शन एवं पूजन कर ले; चंद्रभागा के निकट माघ की अमावास्या एवं पूर्णिमा को राधा सहित मुझ श्रीकृष्ण का दर्शन और वन्दन कर ले तथा सेतुबन्ध तीर्थ में आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन यदि कोई उपवासपूर्वक रामेश्वर के दर्शन एवं पूजन का सौभाग्य प्राप्त कर ले तो वह अपने पुनर्जन्म का खण्डन कर लेता है। रामेश्वर में रात के समय गन्धर्व और किन्न मनोहर गान करते हैं। साक्षात माधव रामेश्वर को प्रणाम करने के लिए वहाँ आते हैं। वहाँ साक्षात रूप से निवास करने वाले सर्वेश्वर चंद्रशेखर का दर्शन करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है और अंत में श्रीहरि के धाम को जाता है। जो उत्तरायण में कोणार्क तीर्थ के भीतर दीननाथ भगवान सूर्य का दर्शन एवं उपवासपूर्वक पूजन करता है; वह पुनर्जन्म के कष्ट को नष्ट कर देता है। कृषिगोष्ठ, सुवसन, कालविंक, युगन्धर, विस्यंदक, राजकोष्ठ, नन्दक पुष्पभद्रक तीर्थ मे पार्वती की प्रतिमा तथा कार्तिकेय, गणेश, नन्दी एवं शंकर का दर्शन करके मनुष्य अपने जन्म को सफल बना लेता है। वहाँ उपवासपूर्वक पार्वती और शिव का दर्शन, पूजन तथा स्तवन करके जो दही खाकर पारणा करता है; उसका जन्म सफल हो जाता है। त्रिकूट पर, मणिभद्र तीर्थ में तथा पश्चिम समुद्र के समीप जो उपवासपूर्वक मेरा दर्शन करके दही खाता है, वह मोक्ष का भागी होता है। जो मेरी तथा पार्वती की प्रतिमाओं में जीव-चैतन्य का न्यास करके उनका पूजन करता है, जो शिव और दुर्गा के तथा विशेषतः मेरे लिए मन्दिर का निर्माण करता और उन मंदिरों में शिव आदि की प्रतिमा को स्थापित करता है; वह अपने जन्म को सफल बना लेता है। जो पुष्पोद्यान, शंकु, सेतु, खात (कुआँ आदि) और सरोवर का निर्माण तथा ब्राह्मण को स्थान एवं वृत्ति देकर उसकी स्थापना करता है; उसका जन्म सफल हो जाता है। पिता जी! ब्राह्मण की स्थापना करने से जो फल होता है; उसे वेद, पुराण, संत, मुनि और देवता भी नहीं जानते। धरती पर जो धूलि के कण हैं, वे गिने जा सकते हैं; वर्षा की बूँदे भी गिनी जा सकती हैं; परंतु ब्राह्मण को वृत्ति और स्थान देकर बसा देने में जो पुण्यफल होता है; उसकी गणना विधाता भी नहीं कर सकते। ब्राह्मण को जीविका देकर मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है, सुस्थिर संपत्ति पाता है और परलोक में चारों प्रकार की मुक्तियों का भागी होता है। वह मेरी दास्य-भक्ति को पा लेता और वैकुण्ठ में चिरकाल तक आनन्द भोगता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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