ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मखण्ड : अध्याय 1
गणेश, ब्रह्मा, महादेवजी, देवराज इन्द्र, शेषनाग आदि सब देवता, मनु, मुनीन्द्र, सरस्वती, लक्ष्मी तथा पार्वती आदि देवियाँ भी जिन्हें मस्तक झुकाती हैं, उन सर्वव्यापी परमात्मा को मैं प्रणाम करता हूँ। स्थूलास्तनूर्विदधतं त्रिगुणं विराजं
जो सृष्टि के लिए उन्मुख हो, तीन गुणों को स्वीकार करके ब्रह्मा, विष्णु और शिव नाम वाले तीन दिव्य स्थूल शरीरों को ग्रहण करते तथा विराट पुरुष रूप हो अपने रोमकूपों में सम्पूर्ण विश्व को धारण करते हैं, जिन्होंने अपनी कला द्वारा भी सृष्टि-रचना की है तथा जो सूक्ष्म तथा अन्तर्यामी आत्मा रूप से सदा सबके हृदय में विराजमान हैं, उन महान आदिपुरुष अजन्मा परमेश्वर का मैं भजन करता हूँ।
ध्यानपरायण देवता, मनुष्य और स्वायम्भुव आदि मनु जिनका ध्यान करते हैं, योगारूढ़ योगीजन जिनका चिन्तन करते हैं, जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति सभी अवस्थाओं में विद्यमान होने पर भी जिन्हें बहुत-से साधक संत कितने ही जन्मों तक तपस्या करके भी देख नहीं पाते हैं तथा जो केवल भक्त पुरुषों के ध्यान करने के लिये स्वेच्छामय अनुपम एवं परम मनोहर श्याम रूप धारण करते हैं, उन त्रिगुणातीत निरीह एवं निर्विकार परमात्मा श्रीकृष्ण का मैं ध्यान करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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