ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 34
परशुराम का कार्तवीर्य के पास दूत भेजना, दूत की बात सुनकर राजा का युद्ध के लिए उद्यत होना और रानी मनोरमा से स्वप्नदृष्ट अपशकुन का वर्णन करना, रानी का उन्हें परशुराम की शरण ग्रहण करने को कहना, परंतु राजा का मनोरमा को समझाकर युद्ध यात्रा के लिये उद्यत होना श्री नारायण कहते हैं– नारद! तदनन्तर भृगुवंशी परशुराम ने प्रातःकालिक नित्यकर्म समाप्त करके भाई-बन्धुओं के साथ परामर्श किया और कार्तवीर्य के आश्रम पर दूत भेजा। उस दूत ने शीघ्र ही जाकर राजाधिराज कार्तवीर्य से कहा। उस समय राजा मन्त्रियों से घिरे हुए राजसभा में बैठे थे। परशुराम का दूत बोला – महाराज! नर्मदा तट के निकट अक्षयवट के नीचे भृगुवंशी परशुराम भाइयों सहित पधारे हुए हैं। वे इक्कीस बार पृथ्वी को राजाओं से शून्य करेंगे। अतः आप वहाँ चलिये अथवा भाई-बन्धुओं के साथ युद्ध कीजिये। इतना कहकर परशुराम का दूत उनके पास लौट गया। इधर राजा कवच धारण करके रण-यात्रा के लिये उद्यत हुआ। तब महारानी मनोरमा ने अपने प्राणपति को युद्ध में जाने के लिए उद्यत देख उसे रोक दिया और अपने पास बैठा लिया। मुने! मनोरमा को देखकर राजा के नेत्र और मुख प्रसन्नता से खिल उठे। फिर तो उसने सभा के बीच रानी से अपने मन की बात की। कार्तवीर्यार्जुन कहने लगा– प्रिये! जमदग्नि के महान पराक्रमी पुत्र परशुराम भाइयों के साथ नर्मदा-तट पर ठहरे हुए हैं। वे मुझे युद्ध के लिये ललकार रहे हैं। उन्हें शंकर जी से शस्त्र और श्रीहरि का मन्त्र तथा कवच प्राप्त हो गया है; अतः वे इक्कीस बार भूमि को भूपालों से हीन कर देना चाहते हैं। इस समाचार से मेरे प्राण काँप उठे हैं, मन बारंबार क्षुब्ध हो रहा है और मेरा बायाँ अंग निरन्तर फड़क रहा है। प्रिये! मैंने एक स्वप्न भी देखा है, सुनो। मैंने देखा है– मैं तेल से सराबोर हूँ। लाल वस्त्र धारण किये हुए हूँ, शरीर पर लाल चन्दन लगा है, लोहे के आभूषणों से भूषित हूँ, अड़हुल के फूलों की माला पहने हूँ और गधे पर चढ़कर हँस रहा हूँ तथा बुझे हुए अंगारों की राशि से क्रीड़ा कर रहा हूँ। पतिव्रते! पृथ्वी पर अड़हुल के पुष्प बिखरे हुए हैं और वह राख से आच्छादित हो गयी है। आकाश चन्द्रमा और सूर्य रहित होकर संध्याकालीन लालिमा से व्याप्त हो गया है। मैंने एक विधवा स्त्री को देखा, जो लाल वस्त्र पहने थी, केश खुले थे, नाक कट गयी थी और वह अट्टहास करती हुई नाच रही थी। महारानी! मैंने एक चिता देखी, जिस पर बाण बिछे थे और वह अग्नि से रहित एवं भस्म से संयुक्त थी। फिर राख की वर्षा, रक्त की वर्षा और अंगारों की वर्षा होते हुए देखा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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