ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 10
शिव, पार्वती तथा देवताओं द्वारा अनेक प्रकार का दान दिया जाना, बालक को देवताओं एवं देवियों का शुभाशीवार्द और इस मंगलाध्याय के श्रवण का फल श्रीनारायण जी कहते हैं– नारद! तदनन्तर उन दोनों पति-पत्नी-शिव-पार्वती ने बाहर जाकर पुत्र की मंगलकामना से हर्षपूर्वक ब्राह्मणों को नानाप्रकार के रत्न दान किये तथा भिक्षुओं और वन्दियों को विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बाँटीं। उस अवसर पर शंकर जी ने अनेक प्रकार के बाजे बजवाये। हिमालय ने ब्राह्मणों को एक लाख रत्न, एक हजार श्रेष्ठ हाथी, तीन लाख घोड़े, दस लाख गौएँ, पाँच लाख स्वर्णमुद्राएँ तथा और भी जो मुक्ता, हीरे और रत्न आदि श्रेष्ठ मणियाँ थीं, वे सभी दान कीं। इसके अतिरिक्त दूसरे प्रकार के भी दान– जैसे वस्त्र, आभूषण और क्षीरसागर से उत्पन्न सभी तरह के अमूल्य रत्न आदि दिये। कौतुकी विष्णु ने ब्राह्मणों को कौस्तुभमणि का दान दिया। ब्रह्मा ने हर्षपूर्वक ब्राह्मणों को ऐसी विशिष्ट वस्तुएँ दान कीं जो सृष्टि में परम दुर्लभ थीं तथा वे ब्राह्मण जिन्हें पाना चाहते थे। इसी तरह धर्म, सूर्य, इन्द्र, देवगण, मुनिगण, गन्धर्व, पर्वत तथा देवियों ने क्रमशः दान दिये। ब्रह्मन्! इस अवसर पर क्षीरसागर ने हर्षित होकर कौतुकवश एक हजार माणिक्य, एक सौ कौस्तुभमणि, एक सौ हीरक, एक सहस्र हरे रंग की श्रेष्ठ मणियाँ, एक लाख गो-रत्न, एक सहस्र गज-रत्न, श्वेतवर्ण के अन्यान्य अमूल्य रत्न, एक करोड़े स्वर्णमुद्राएँ और अग्नि में तपाकर शुद्ध किये हुए वस्त्र ब्राह्मणों को प्रदान किये। सरस्वती देवी ने अमूल्य रत्नों का बना हुआ एक ऐसा हार दिया, जो तीनों लोकों में दुर्लभ था। वह अत्यन्त निर्मल, साररूप और अपनी प्रभा से सूर्य के प्रकाश की निन्दा करने वाला, मणिजटित और हीरे के नगों से सुशोभित था। उस रमणीय हार के मध्य में कौस्तुभमणि पिरोयी हुई थी। सावित्री ने हर्षित होकर एक बहुमूल्य रत्नों द्वारा निर्मित त्रिलोकी का साररूप हार और सब तरह के आभूषण प्रदान किये। आनन्दमग्न कुबेर ने एक लाख सोने की सिलें, अनेक प्रकार के धन और एक सौ अमूल्य रत्न दान किये। मुने! शिवपुत्र के जन्मोत्सव में उपस्थित सभी लोगों ने इस प्रकार ब्राह्मणों को दान देकर तत्पश्चात उस शिशु का दर्शन किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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