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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 76
जिनके दर्शन से पुण्यलाभ और जिनके अनुष्ठान से पुनर्जन्म का निवारण होता है, उन वस्तुओं और सत्कर्मों का वर्णन तथा विविध दानों के पुण्यफल का कथन श्रीनन्द ने कहा- सर्वेश्वर! जिनके दर्शन से पुण्य और जिन्हें देखने से पाप होता है, उन सबका परिचय दो। यह सुनने के लिए मेरे मन में बड़ा कौतूहल है। श्रीभगवान बोले- तात! उत्तम ब्राह्मण, तीर्थ, वैष्णव, देवप्रतिमा, सूर्यदेव, सती स्त्री, संन्यासी, यति, ब्रह्मचारी, गौ, अग्नि, गुरु, गजराज, सिंह, श्वेत अश्व, शुक, कोकिल खञ्जरीट, हंस, मोर, नीलकण्ठ, शंखपक्षी, बछड़े सहित गाय, पीपलवृक्ष, पति-पुत्रवाली नारी, तीर्थयात्री मनुष्य, प्रदीप, सुवर्ण, मणि, मोती, हीरा, माणिक्य, तुलसी, श्वेत पुष्प, फल, श्वेत धान्य, घी, दही, मधु, भरा हुआ घड़ा, लावा, दर्पण, जल, श्वते पुष्पों की माला, गोरोचन, कपूर, चाँदी, तालाब फूलों से भरी हई वाटिका, शुक्लपक्ष के चंद्रमा अमृत, चंदन, कस्तूरी, कुक्कुम, पताका, अक्षयवट, देववृक्ष, देवालय, देवसंबंधी जलाशय, देवता के आश्रित भक्त, देवघट, सुगन्धित वायु, शंख, दुन्दुभि, सीपी, मूँगा, रजत, स्फटिक मणि, कुश की जड़, गंगाजी की मिट्टी, कुशा, ताँबा, पुराण की पुस्तक, शुद्ध और बीजमंत्र सहित विष्णु का यंत्र, चिकनी दूब, अक्षत, रत्न, तपस्वी, सिद्धमंत्र, समुद्र, कृष्णसार मृग, यज्ञ, महान उत्सव, गोमूत्र, गोबर, गोदूध, गोधूलि, गोशाला, गोखुर, पकी हुई खेती से भरा खेत, सुन्दर पद्मिनी, श्यामा, सुन्दर वेष, वस्त्र एवं दिव्य आभूषणों से विभूषित सौभाग्यवती स्त्री, क्षेमकारी, गन्ध, दूर्वा, अक्षत और तण्डुल, सिद्धांन्न एवं उत्तम अन्न- इन सबके दर्शन से पुण्यलाभ होता है। कार्तिक की पूर्णिमा को राधिका जी की शुभ प्रतिमा का पूजन, दर्शन और वन्दन करके मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसी प्रकार आश्विनमास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को हिंगुला में श्रीदुर्गा जी की प्रतिमा का तथा शिवरात्रि को काशी में विश्वनाथ जी का दर्शन, उपवास, और पूजन करने से पुनर्जन्म के कष्ट का निवारण हो जाता है। यदि भक्त पुरुष जन्माष्टमी के दिन मुझ बिन्दुमाधव का दर्शन, वन्दन और पूजन कर ले; पौषमास के शुक्लपक्ष की रात्रि मे जहाँ कहीं भी पद्मा की प्रतिमा का दर्शन प्राप्त कर ले; काशी में एकादशी को उपवास करके द्वादशी को प्रातःकाल स्नान कर अन्नपूर्णा जी का दर्शन कर ले; चैत्रमास की चतुर्दशी को पुण्यदायक कामरूप देश में भद्रकाली देवी का दर्शन और वन्दन कर ले; अयोध्या में श्रीरामनवमी के दिन मुझ राम का पूजन, वन्दन और दर्शन कर ले तथा गया के विष्णुपद तीर्थ में जो पिण्ड दान एवं विष्णु का पूजन कर ले तो वह पुरुष अपने पुनर्जन्म के कष्ट का निवारण कर लेता है। साथ ही गया तीर्थ के श्राद्ध से वह पितरों का भी उद्धार करता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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