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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 99
गर्ग जी का आगमन और वसुदेव जी से पुत्रों के उपनयन के लिए कहना, उसी प्रसंग में मुनियों और देवताओं का आना, वसुदेव जी द्वारा उनका सत्कार और गणेश का अग्र-पूजन श्रीनारायण कहते हैं- नारद! इसी समय तपस्वी गर्ग जी, जो सदा संयम में तत्पर रहने वाले और यदुवंशियों के कुल पुरोहित थे, वसुदेव जी के आश्रम पर पधारे। उनके सिर पर जटा थी तथा हाथ में दण्ड और छत्र सुशोभित थे। वे शुक्ल यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे। उनके दाँत और वस्त्र श्वेत थे तथा वे ब्रह्मतेज से उद्दीप्त हो रहे थे। उन्हें आया देख वसुदेव और देवकी ने सहसा उठकर भक्तिपूर्ण प्रणाम किया और बैठने के लिए रत्नसिंहासन दिया। फिर मधुपर्क, कामधेनु और अग्निशुद्ध वस्त्र प्रदान करके चंदन और पुष्पमाला द्वारा उनकी भक्तिभाव सहित पूजा की। इसके बाद यत्नपूर्वक उन्हें मिष्टान्न, उत्तम अन्न और मधुर पिष्टक का भोजन कराया और सुवासित पान का बीड़ा दिया। तदनन्तर गर्गजी ने बलदेव सहित श्रीकृष्ण को देखकर उन्हें मन ही मन प्रणाम किया और पतिव्रता देवकी तथा वसुदेवजी से कहा। गर्गजी बोले- वसुदेव! जरा, बलरामसहित अपने शुद्धाचारी एवं श्रेष्ठ पुत्र श्रीकृष्ण की ओर तो देखो। अब इनकी अवस्था उपनयन-संस्कार के योग्य हो गयी है; अतः मेरी इस बात पर ध्यान दो। वसुदेव जी ने कहा- गुरो! आप यदुवंशियों के पूज्य देव हैं, अतः उपनयन के योग्य ऐसा शुद्ध एवं शुभ मुहूर्त नियत कीजिए, जो सत्पुरुषों के लिए भी प्रशंसनी हो। गर्गजी बोले- वसु-तुल्य वसुदेव! परसों वह शुभ मुहूर्त है; उस दिन चंद्रमा और तारा अनुकल हैं। वह दिन सत्पुरुषों को भी मान्य है; अतः उसी मुहूर्त में तुम उपनयन संस्कार कर सकते हो। इसके लिए यत्नपूर्वक सभी सामग्री एकत्रित करो और सभी बन्धुओं को निमन्त्रण पत्र भी भेज दो। गर्गजी के वचन सुनकर वसूपम वसुदेव जी ने सभी जाति-बन्धुओं के पास मंगल-पत्रिका भेज दी। फिर दूध, दही, घी, मधु और गुड़ की छोटी-छोटी मनोहर नदियाँ तैयार करायीं और नाना प्रकार के उपहारों की राशि तथा मणि, रत्न, सुवर्ण, मुक्ता, माणिक्य, हीरे, अनेक तरह के आभूषण और वस्त्रों की ढेरियाँ लगवा दीं। इधर भक्तवत्सल श्रीकृष्ण ने भी भक्तिपूर्वक देवगणों, मुनीन्द्रों, श्रेष्ठ सिद्धों और भक्तों का मन ही मन स्मरण किया। तदनन्तर उस शुभ दिन के प्राप्त होने पर वे सभी उपस्थित हुए। मुनिश्रेष्ठ, बान्धव, बहुत से नरेश, देवकन्याएँ, नागकन्याएँ, राजकुमारियाँ, विद्याधरियाँ और बाजा बजाने वाले गन्धर्व भी आये। ब्राह्मण, भिक्षुक, भट्ट, यति, ब्रह्मचारी, संन्यासी, अवधूत और योगीलोग भी पधारे। उस शुभ कर्म में स्त्रियों के भाई-बन्धु अपने बन्धुओं का समुदाय, नाना का तथा उनके बन्धुओं का कुटुम्ब- ये सभी सम्मिलित हुए। फिर भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, द्विजवर कृपाचार्य, पत्नी और पुत्रोंसहित धृतराष्ट्र, हर्ष और शोक में भरी हुई पुत्रों सहित विधवा कुन्ती तथा विभिन्न देशों में उपन्न हुए योग्य राजा और राजकुमार भी आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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