ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 17
कार्तिकेय का अभिषेक तथा देवताओं द्वारा उन्हें उपहार-प्रदान श्रीनारायण जी कहते हैं– नारद! तदनन्तर जगदीश्वर विष्णु ने प्रसन्न मन से शुभ मुहूर्त निश्चय करके कार्तिकेय को एक रमणीय रत्नसिंहासन पर बैठाया और कौतुकवश नाना प्रकार के झाँझ-मँजीरा तथा यन्त्रमय बाजे बजवाये। फिर अमूल्य रत्नों के बने हुए सैकड़ों घड़ों से, जो वेद मन्त्रों द्वारा अभिषिक्त तथा सम्पूर्ण तीर्थों के जलों से परिपूर्ण थे, कार्तिकेय को हर्षपूर्वक स्नान कराया। तत्पश्चात कार्तिकेय को प्रसन्न मन से बहुमूल्य रत्नों द्वारा निर्मित किरीट, दो मांगलिक बाजूबंद, अमूल्य रत्नों के बने हुए बहुत-से आभूषण, अग्नि में तपाकर शुद्ध किये हुए दो दिव्य वस्त्र, क्षीरसागर से उत्पन्न हुई कौस्तुभमणि और वनमाला दी। ब्रह्मा ने यज्ञसूत्र, वेद, वेदमाता गायत्री, संध्या-मन्त्र, कृष्ण-मन्त्र, श्रीहरि का स्तोत्र और कवच, कमण्डलु, ब्रह्मास्त्र तथा शत्रुविनाशिनी विद्या प्रदान की। धर्म ने दिव्य धर्मबुद्धि और समस्त जीवों पर दया समर्पित की। शिव ने परमोत्कृष्ट मृत्युंजय-ज्ञान, सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान, निरन्तर सुख प्रदान करने वाला परम मनोहर तत्त्वज्ञान, योगतत्त्व, सिद्धितत्त्व, परम दुर्लभ ब्रह्मज्ञान, योगतत्त्व, सिद्धितत्त्व, परम दुर्लभ ब्रह्मज्ञान, त्रिशूल, पिनाक, फरसा, शक्ति, पाशुपतास्त्र, धनुष और संधान-संहार के ज्ञानसहित संहारास्त्र अर्पित किया। वरुण ने श्वेत छत्र और रत्नों की माला, महेन्द्र ने गजराज, अमृतसागर ने अमृत का कलश, सूर्य ने मन के समान वेगशाली रथ और मनोहर कवच, यम ने दमण्ड और अग्नि ने बहुत बड़ी शक्ति प्रदान की। इसी प्रकार अन्यान्य सभी देवताओं ने भी हर्षपूर्वक नाना प्रकार के शस्त्र उन्हें भेंट किये। कामदेव ने हर्षमग्न होकर उन्हें कामशास्त्र और क्षीरसागर के अमूल्य रत्न तथा रत्नों के बने हुए विशिष्ट नूपुर दिये। पार्वती का मन तो उस समय परमानन्द में निमग्न था, उन्होंने मुस्कराते हुए महाविद्या, सुशीलाविद्याल, मेधा, दया, स्मृति, अत्यन्त निर्मल बुद्धि, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्षमा, धृति, श्रीहरि में सुदृढ़ भक्ति और श्रीहरि की दासता प्रदान की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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