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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 28
श्रीकृष्ण के रास-विलास का वर्णन नारद जी ने पूछा– भगवन! तीन मास व्यतीत होने पर गोपांगनाओं का श्रीहरि के साथ किस प्रकार मिलन हुआ? वृन्दावन कैसा है? रासमण्डल का क्या स्वरूप है? श्रीकृष्ण तो एक थे और गोपियाँ बहुत। ऐसी दशा में किस तरह वह क्रीड़ा सम्भव हुई? मेरे मन में इस नयी-नयी लीला को सुनने के लिये बड़ी उत्सुकता हो रही है। महाभाग! आपके नाम और यश का श्रवण एवं कीर्तन बड़ा पवित्र है। कृपया आप उस रासक्रीड़ा का वर्णन कीजिये। अहो! श्रीहरि की रासयात्रा, पुराणों के सार की भी सारभूता कथा है। इस भूतल पर उनके द्वारा की गयी सारी लीलाएँ ही सुनने में अत्यन्त मनोहर जान पड़ती हैं। सूत जी कहते हैं– शौनक! नारद जी की यह बात सुनकर साक्षात नारायण ऋषि हँसे और प्रसन्न मुख से उन्होंने कथा सुनाना आरम्भ किया। श्री नारायण बोले– मुने! एक दिन श्रीकृष्ण चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को चन्द्रोदय होने के पश्चात वृन्दावन में गये। उस समय जूही, मालती, कुन्द और माधवी के पुष्पों का स्पर्श करके बहने वाली शीतल, मन्द एवं सुगन्धित मलयवायु से सारा वनप्रान्त सुवासित हो रहा था। भ्रमरों के मधुर गुंजारव से उसकी मनोहरता बढ़ गयी थी। वृक्षों में नये-नये पल्लव निकल आये थे और कोकिल की कुहू-कुहू ध्वनि से वह वन मुखरित हो रहा था। नौ लाख रासगृहों से संयुक्त वह वृन्दावन बड़ा ही मनोहर जान पड़ता था। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और कुंकुम की सुगन्ध सब ओर फैर रही थी। कर्पूरयुक्त ताम्बूल तथा भोगद्रव्य सजाकर रखे गये थे। कस्तूरी और चन्दन युक्त चम्पा के फूलों से रचित नाना प्रकार की शय्याएँ उस स्थान की शोभा बढ़ा रही थीं। रत्नमय प्रदीपों का प्रकाश सब ओर फैला था। धूप की सुगन्ध से वह वन प्रान्त महमह महक रहा था। वहीं सब ओर से गोलाकार रासमण्डल बनाया गया था, जो नाना प्रकार के फूलों और मालाओं से सुसज्जित था। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और केसर से वहाँ की भूमि का संस्कार किया गया था। रासमण्डल के चारों ओर फूलों से भरे उद्यान तथा क्रीड़ा सरोवर थे। उन सरोवरों में हंस, कारण्डव तथा जलकुक्कुट आदि पक्षी कलरव कर रहे थे। वे जलक्रीड़ा के योग्य सुन्दर तथा सुरत-श्रम का निवारण करने वाले थे। उनमें शुद्ध स्फटिकमणि के समान स्वच्छ तथा निर्मल जल भरा था। उस रासमण्डल में दही, अक्षत और जल छिड़के गये थे। केले के सुन्दर खम्भों द्वारा वह चारों ओर से सुशोभित था। सूत में बँधे हुए आम के पल्लवों के मनोहर बन्दनवारों तथा सिन्दूर, चन्दन युक्त मंगल-कलशों से उसको सजाया गया था। मंगल कलशों के साथ मालती की मालाएँ और नारियल के फल भी थे। उस शोभासम्पन्न रासमण्डल को देखकर मधुसूदन हँसे। उन्होंने कौतूहलवश वहाँ विनोद की साधनभूता मुरली को बजाया। वह वंशी की ध्वनि उनकी प्रेयसी गोपांगनाओं के प्रेम को बढ़ाने वाली थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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