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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 18
श्रीवन के समीप यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों की पत्नियों का ग्वालबालों सहित श्रीकृष्ण को भोजन देना तथा उनकी कृपा से गोलोकधाम को जाना, श्रीकृष्ण की माया से निर्मित उनकी छायामयी स्त्रियों का ब्राह्मणों के घरों में जाना तथा विप्रपत्नियों के पूर्वजन्म का परिचय नारद जी बोले– मुनिश्रेष्ठ! ज्ञानसिन्धो! मैं आपका शरणागत शिष्य हूँ। आप मुझे श्रीकृष्ण-लीलामृत का पान कराइये। भगवान श्रीनारायण ने कहा– एक दिन बलराम सहित श्रीकृष्ण ग्वालबालों को साथ ले श्रीमधुवन में गये, जहाँ यमुना के किनारे कमल खिले हुए थे। उस समय सब बालक सहस्रों गौओं के साथ वहाँ विचरने और खेलने लगे। खेलते-खेलते वे थक गये और उन्हें भूख-प्यास सताने लगी। तब सब गोप शिशु बड़ी प्रसन्नता के साथ श्रीकृष्ण के पास आये और बोले– ‘कन्हैया! हमें बड़ी भूख लगी है। हम सेवकों को आज्ञा दो, क्या करें?’ ग्वालबालों की बात सुनकर प्रसन्नमुख और नेत्र वाले दयानिधान श्रीहरि ने उनसे यह हितकर तथा सच्ची बात कही। श्रीकृष्ण बोले– बालको! जहाँ ब्राह्मणों का सुखदायक यज्ञस्थान है, वहाँ जाओ। जाकर उन यज्ञतत्पर ब्राह्मणों से शीघ्र ही भोजन के लिये अन्न माँगो। वे सभी आंगिरस गोत्र वाले ब्राह्मण हैं और श्रीवन के निकट अपने आश्रम में यज्ञ करते हैं। उन्होंने श्रुतियों और स्मृतियों का विशेष ज्ञान प्राप्त किया है। वे सब निःस्पृह वैष्णव हैं और मोक्ष की कामना से मेरा ही यजन कर रहे हैं। परंतु माया से आच्छादित होने के कारण उन्हें इस बात का पता नहीं है कि योगमाया से मनुष्यरूप धारण करके प्रकट हुआ मैं ही उनका आराध्य देव हूँ। केवल यज्ञ की ओर ही उन्मुख रहने वाले वे ब्राह्मण यदि तुम्हें अन्न न दें तो शीघ्र ही जाकर उनकी पत्नियों से माँगना; क्योंकि वे बालकों के प्रति दया से भरी हुई हैं। श्रीकृष्ण की बात सुनकर वे श्रेष्ठ गोपबालक ब्राह्मणों के सामने जा मस्तक झुकाकर खड़े हो गये और बोले- ‘विप्रवरो! हमें शीघ्र भोजन दीजिये।’ परंतु उनमें से कुछ द्विजों ने तो उनकी बात सुनी ही नहीं और कुछ लोग सुनकर भी ज्यों-के-त्यों खड़े रह गये। तब वे पाकशाला में गये, जहाँ ब्राह्मणियाँ भोजन बना रही थीं। उन बालकों ने ब्राह्मण पत्नियों को सिर झुकाकर प्रणाम किया। प्रणाम करके वे सब बालक उन पतिव्रता ब्राह्मणियों से बोले– ‘माताओ! हम सब बालक भूख से पीड़ित हैं। हमें भोजन दो।’ उन बालकों की बात सुनकर और उनकी मनोहर आकृति देखकर उन सती-साध्वी ब्राह्मणियों ने मुस्कराते हुए मुखारविन्द से आदरपूर्वक पूछा। ब्राह्मणपत्नियाँ बोलीं– समझदार बालको! तुम लोग कौन हो? किसने तुम्हें भेजा है? और तुम्हारे नाम क्या हैं? हम तुम्हें व्यंजनसहित नाना प्रकार का श्रेष्ठ भोजन प्रदान करेंगी। ब्राह्मणियों की बात सुनकर वे सभी स्निग्ध एवं हष्ट-पुष्ट गोपबालक प्रसन्नतापूर्वक हँसते हुए बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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