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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 91-92
श्रीकृष्ण का उद्धव को गोकुल भेजना, उद्धव का गोकुल में सत्कार तथा उनका वृन्दावन आदि सभी वनों की शोभा देखते हुए राधिका के पास पहुँचना और राधास्तोत्र द्वारा उनका स्तवन करना श्रीभगवान ने कहा- तात! कर्मफल- भोग के अनुसार संयोग और उसी से वियोग भी होता है तथा उसी से क्षणमात्र में दर्शन भी प्राप्त हो जाता है। भला, उस कर्मभोग को कौन मिटा सकता है? पिता जी! उद्धव गमनागमन का प्रयोजन बतलायेंगे। मैं उन्हें शीघ्र ही भेजता हूँ। तत्पश्चात आपको भी सब मालूम हो जायेगा। वे गोकुल में जाकर यशोदा, रोहिणी, गोपिकाओं, ग्वालबालों और उस प्राणप्यारी राधिका को समझायेंगे- श्रीकृष्ण यों कह ही रहे थे कि वहाँ वसुदेव, देवकी, बलदेव, उद्धव तथा अक्रूर शीघ्र ही आ पहुँचे। वसुदेव ने कहा- नन्द जी! तुम तो बलवान, ज्ञानी, मेरे सद्बन्धु और सका हो; अतः मोह को त्याग दो और घर को प्रस्थान करो। यह श्रीकृष्ण जैसा मेरा बच्चा है, उसी तरह तुम्हारा भी है। मित्र! मथुरानगरी गोकुल से दूर नहीं है; वह तो उसके दरवाजे के समान है। अतः नन्दजी! सदा आनन्द-महोत्सव के अवसर पर तुम्हें यह पुत्र देखने को मिलेगा। श्रीदेवकी ने कहा- नन्दजी! यह श्रीकृष्ण जैसे हम दोनों का पुत्र हैं; उसी तरह आपका भी है- यह निश्चित है; फिर किसलिए आपका शरीर शोक से मुरझाया हुआ दीख रहा है? श्रीकृष्ण तो बलदेव के साथ आपके महल में ग्यारह वर्षों तक सुखपूर्वक रह चुका है, तब आप थोड़े दिनों के वियोग से ही शोकग्रस्त कैसे हो जाएंगे? (यदि ऐसी बात है तो) कुछ दिनों तक मथुरा में ही इस पुत्र के साथ आप रहिये और उसके पूर्णिमा के चंद्रमा के समान कान्तिमान मुख का अवलोकन कीजिए तथा अपना जन्म सफल कीजिए। तब श्रीभगवान बोले- उद्धव! तुम सुख-पूर्वक गोकुल जाओ। भद्र! तुम्हारा कल्याण होगा। तुम हर्षपूर्वक गोकुल में जाकर मेरे द्वारा दिए गये शोक का विनाश करने वाले आध्यात्मिक ज्ञान से माता यशोदा, रोहिणी, ग्वालबाल-समूह, मेरी राधिका और गोपिकाओं को सान्त्वना दो। शोक के कारण नन्द जी मेरी माता की आज्ञा से अब यहीं रहें। तुम नन्दजी का ठहरना और मेरी विनय यशोदा को बदला देना। यों कहकर श्रीकृष्ण पिता, माता, बलराम और अक्रूर के साथ तुरंत ही महल के भीतर चले गये। नारद! उद्धव मथुरा में रात बिताकर प्रातःकाल शीघ्र ही रमणीय वृन्दावन नामक वन के लिए प्रस्थित हुए। श्रीनारायण कहते हैं- नारद! श्रीकृष्ण की प्रेरणा से उद्धव हर्षपूर्वक गणेश्वर को प्रणाम करके नारायण, शम्भु, दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का स्मरण करते हुए मन ही मन गंगा और उस दिशा के स्वामी महेश्वर का ध्यान करके मंगल सूचक शकुनों को देखते हुए आगे बढ़े। उन्हें मार्ग में दुन्दुभि और घण्टा का शब्द, शंख की ध्वनि, हरिनाम-संकीर्तन और मंगल ध्वनि सुनायी पड़ी। इस प्रकार वे मार्ग में पति-पुत्रवती साध्वी नारी, प्रज्वलित दीप, माला, दर्पण, जल से परिपूर्ण घट, दही, लावा, फल, दूर्वांकुर, सफेद धान, चाँदी, सोना, मधु, ब्राह्मणों का समूह, कृष्णसार मृग, साँड़, घी, गजराज, नरेश्वर, श्वेत रंग का घोड़ा, पताका, नेवला, नीलकण्ठ, श्वेत पुष्प और चन्दन आदि कल्याणमय वस्तुओं को देखते हुए वृन्दावन नामक वन में जा पहुँचे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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