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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 115
कन्या की दुःशीलता का समाचार पाकर बाण का युद्ध के लिए उद्यत होना; शिव, पार्वती, गणेश, स्कन्द और कोटरी का उसे रोकना; परंतु बाण का स्कन्द को सेनापति बनाकर युद्ध के लिए नगर के बाहर निकलना, उषाप्रदत्त रथ पर सवार होकर अनिरुद्ध का भी युद्धोद्योग करना, बाण और अनिरुद्ध का परस्पर वार्तालाप श्रीनारायण कहते हैं- नारद! तदनन्तर अंतःपुर के रक्षकों ने भयभीत हो स्कन्द, गणेश और पार्वती को दण्ड की भाँति भूमि पर लेटकर प्रणाम किया और अपने स्वामी बाण से सारा वृत्तान्त कह सुनाया। उसे सुनकर बाण को बड़ी लज्जा हुई और वह क्रुद्ध हो उठा। उस समय शम्भु, गणेश, स्कन्द, पार्वती, भैरवी, भद्रकाली, योगिनियाँ, आठों भैरव, एकादश रुद्र, भूत, प्रेत, कूष्माण्ड, बेताल ब्रह्मराक्षस, योगीन्द्र, सिद्धेन्द्र, रुद्र, चण्ड आदि तथा माता की भाँति हितैषिणी करोड़ों ग्रामदेवियाँ- ये सभी उसके हित के लिए बराबर मना कर रहे थे; फिर भी उसने युद्ध करने का ही विचार निश्चित किया। तब शंकर जी अपने को पण्डित मानने वाले मूर्ख बाण से हितकारक, सत्य, नीतिशास्त्रसम्मत और परिणाम में सुखदायक वचन बोले। श्री महादेव जी ने कहा- बाण! मैं इस पुरातनी कथा का वर्णन करता हूँ, सुनो। स्वयं परमेश्वर पृथ्वी का भार उतारने के लिए भारतवर्ष में सभी नरेशों का संहार करके द्वारका में विराजमान हैं। जिनके रोमों में सारे विश्व वर्तमान हैं, उन वासु के भी वे ईश्वर हैं; इसीलिए विद्वान लोग उन्हें ‘वासुदेव’ ऐसा कहते हैं। स्वयं भगवान चक्रपाणि भूतल पर ब्रह्मा के भी विधाता हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि के स्वामी हैं; प्रकृति से परे, निर्गुण, इच्छारहित, भक्तानुग्रहमूर्ति, परब्रह्मा, परम धाम और देहधारियों के परमात्मा हैं। जिनके शरीर से निकल जाने पर जीव शवतुल्य हो जाता है; उनके साथ तुम्हारा संग्राम कैसे संभव हो सकता है? अनिरुद्ध उन्हीं के पुत्र (पौत्र) हैं। वे महान बल-पराक्रम से संपन्न हैं और क्षणभर में अकेले ही तीनों लोकों का संहार करने में समर्थ हैं। जितने महारथी बलवान देवता और दैत्य हैं, वे सभी अनिरुद्ध की सोलहवीं कला के भी बराबर नहीं है। जिन दो व्यक्तियों में समान धन हो और जिनमें बल की भी समानता हो; उन्हीं दोनों में विवाह और मैत्री शोभा देती है। बलवान और निर्बल का संबंध उचित नहीं होता। तुम्हारे पिता महारथी बलि दैत्यों के सारभूत और श्रीहरि की कला थे। उन्हें भी जिसने क्षणभर में ही सुतल-लोक को भेज दिया; उन्हीं वृन्दावनेश्वर परम पुरुष परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण के सभी जीव अंश-कलाएँ हैं। पार्वती जी बोलीं- बाण! ब्रह्मा, महेश, शेष और ध्याननिष्ठ भक्त रात-दिन अपने हृदय कमल में उन सनातन भगवान का ध्यान करते रहते हैं। सूर्य, गणेश और योगीन्द्रों के गुरु के गुरु शिव उन ऐश्वर्यशाली सनातन परमात्मा के ध्यान में तल्लीन रहते हैं। सनत्कुमार, कपि, नर तथा नारायण अपने हृदय कमल में उन सनातन भगवान का ध्यान लगाते हैं। मनु, मुनीन्द्र, सिद्धेंद्र और योगीन्द्र ध्यान द्वारा अप्राप्य उन सनातन भगवान के ध्यान में निमग्न रहते हैं। जो सबके आदि, सबके कारण, सर्वेश्वर और परात्पर हैं; उन सनातन भगवान का सभी ज्ञानी ध्यान करते हैं। तदनन्तर गणेश और स्कन्द ने भी बाण को श्रीकृष्ण की महिमा भलिभाँति समझाकर युद्ध न करके अनिरुद्ध के साथ उषा का विवाह कर देने के लिए अनुरोध किया। अन्त में कोटरी बोली ‘वत्स! धर्मानुसार मैं भी तुम्हारी माता हूँ; अतः जो कुछ कहती हूँ, उसे श्रवण करो। दुष्ट पुत्र से भी माता-पिता को पद-पद पर दुःख ही होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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