विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 94
सखियों द्वारा श्रीकृष्ण की निन्दा एवं प्रशंसा और उद्धव का मूर्च्छित हुई राधा को सान्त्वना प्रदान करना श्रीनारायण कहते हैं- मुने! राधिका को मूर्च्छित देखकर उद्धव को महान विस्मय और भय प्राप्त हुआ। वे राधा की सच्ची भक्ति और अपने को कहने का मात्र का भक्त जानकर तथा भाग्यवती सती राधा की ओर देखकर सारे जगत का तुच्छ समझने लगे। तदनन्तर मृतक-तुल्य पड़ी हुई राधा को होश में लाते हुए उनसे बोले। उद्धव ने कहा- कल्याणि! होश में आ जाओ। जगन्मातः तुम्हें नमस्कार है। तुम्हीं पूर्वजन्मकृत समस्त कर्म हो। अब तुम्हें श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे। तुम्हारे दर्शन से विश्व पवित्र हो गया और तुम्हारी चरणरज से पृथ्वी पावन हो गयी। तुम्हारा मुख परम पवित्र है और (तुम्हारे स्पर्श से) गोपिकाएँ पुण्यवती हो गयीं। लोग गीत तथा मंगल-स्तोत्रों द्वारा तुम्हारा ही गान करते हैं। वेद तथा सनकादि महर्षि तुम्हारी उत्तम कीर्ति का जो किए हुए पापों को नष्ट करने वाली, पुण्यमयी, तीर्थपूजास्वरूपा, निर्मल, हरिभक्तिप्रदायिनी, कल्याणकारिणी और संपूर्ण विघ्नों का विनाश करने वाली है- सदा बखान करते हैं। तुम्हीं राधा हो; तुम्हीं श्रीकृष्ण हो। तुम्हीं पुरुष हो; तुम्हीं परा प्रकृति हो। पुराणों तथा श्रुतियों में कहीं भी राधा और माधव में भिन्नता नहीं पायी जाती। तदनन्दर राधिका को मूर्च्छित देखकर उन उद्धव को पीछे करके और स्वयं राधा के आगे खड़ी हो माधवी गोपी बोली। माधवी ने कहा- कल्याणि! श्रीकृष्ण तो चोर हैं, उनका कौन सा उत्तम रूप और वेष है? उनके सुख और वैभव ही क्या है? कोई अनुपम गौरव भी तो नहीं है? उनका कौन सा पराक्रम, ऐश्वर्य अथवा दुर्लङ्घ्य शौर्य है? उनमें कौन सी सिद्धता एवं प्रसिद्धि है? तुम्हारे सदृश उनमें कौन सा उत्तम गुण है? वे यहाँ कहीं से आ गये और पुनः कहीं चले गये। वे गोपेषधारी बालक ही तो हैं न? कोई राजपुत्र अथवा विशिष्ट पुरुष थोड़े ही हैं। फिर तुम व्यर्थ उन नन्दनन्दन गोपाल की चिन्ता में क्यों पड़ी हो? अरे! यत्नपूर्वक तुम अपने आत्मा की रक्षा करो; क्योंकि आत्मा से बढ़कर प्रिय दूसरा कुछ नहीं है। तदनन्तर मालती ने श्रीकृष्ण की निन्दा करते हुए अन्त में राधा से कहा- मूढ़े! तुम व्यर्थ किसकी चिन्ता में पड़ी हो? यह अत्यंत दारुण शोक छोड़ दो और यत्नपूर्वक अपनी रक्षा करो; क्योंकि अपने आत्मा से बढ़कर प्रिय दूसरा कुछ भी नहीं है। इस पर पद्मावती ने, फिर चंद्रमुखी ने श्रीराधा के कृष्णप्रेम की प्रशंसा करते हुए कहा- देखो, मेरी सखी ने आहार का त्याग कर दिया है; अतः केवल साँस चलने से ये जीवित प्रतीत होती हैं। इसलिए अब तुम अपने मुख से श्रीकृष्ण की प्रशंसा करो; क्योंकि श्रीकृष्ण के नाम स्मरण से, उनकी गुणगाथा के श्रवण से और उनके शुभ समाचार के सुनने से इनमें सहसा चेतना लौट आती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |