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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 100-101
अदिति आदि देवियों द्वारा पार्वती का स्वागत सत्कार, वसुदेव जी का देव-पूजन आदि मांगलिक कार्य करके बलराम और श्रीकृष्ण का उपनयन करना, तत्पश्चात नन्द आदि समागत अभ्यागतों की बिदाई और वसुदेव-देवकी का अनेक विध वस्तुओं का दान करना श्रीनारायण कहते हैं- नारद! तदनन्तर अदिति, दिति, देवकी, रोहिणी, रति, सरस्वती, पतिव्रता यशोदा, लोपामुद्रा, अरुन्धती, अहल्या तथा तार का- ये सभी महिलाएँ पार्वती को देखकर तुरंत ही मन्दिर से बाहर निकलीं और बारंबार आलिंगन करके उन्हें नमस्कार करने लगीं। तत्पश्चात परस्पर वार्तालाप करके उन्हें एक रत्ननिर्मित महल में प्रवेश कराया। वहाँ उन परमेश्वरी को रमणयी रत्नसिंहासन पर बैठाया गया और वस्त्र, रत्नों के आभूषणों तथा पुष्पमालाओं से उनकी पूजा की गयी। तत्पश्चात देवकी ने भक्तिपूर्वक उनके चरणकमलों में इंद्र द्वारा लाया गया पारिजात का मनोहर पुष्प निवेदन किया। फिर माँग में सिन्दूर की बेंदी और ललाट पर चन्दन का बिन्दु लगाकर उन दोनों बिन्दुओँ के चारों ओर कस्तूरी और कुंकुम आदि का लेप किया। तत्पश्चात मिष्टान्न भोजन कराया, सुवासित शीतल जल पीने को दिया और कपूर आदि से सुवासित सुन्दर एवं श्रेष्ठ पान का बीड़ा समर्पित किया। उनके दानों चरणकमलों के नखों पर अलक्तक लगाकर पैरों को कुंकुम से रँग दिया और श्वेत चँवर डुलाकर उनकी सेवा की। उत्तम व्रत का पालन करने वाले नारद! इस प्रकार पार्वती देवी का भलीभाँति पूजन करके वसुदेव जी की प्रियतमा देवकी ने क्रमशः मुनिपत्नियों, पति-पुत्रवती सतियों, राजकन्याओं, देवकन्याओं, सौंदर्यशालिनी नाग-कन्याओं, मुनिकन्याओं और भाई-बन्धुओं की कन्याओं का भी विधिवत पूजन किया। कौतुकवश नाना प्रकार के सुंदर बाजे बजवाये; मांगलिक कार्य कराया; ब्राह्मणों को जिमाया; मथुरा की ग्रामदेवता भैरवी और मंगलचण्डिका षष्ठी की षोडशोपचार द्वारा पूजा की। पुण्यकारक एवं मंगलमय शुद्ध स्वस्त्ययन तथा वेदों का पाठ कराया। तदनन्तर पुत्रवत्सला देवकी ने स्वर्ग गंगा के उत्तम जल से परिपूर्ण सुवर्णकलश से बलराम सहित श्रीकृष्ण को नहलाया और वस्त्र, चन्दन, माला तथा बहुमूल्य रत्नों के बने हुए मनोहर आभूषणों से उन दोनों बालकों का श्रृंगार किया। नारद! यों माता द्वारा दिए गए आभूषणों से विभूषित हो बलराम और श्रीकृष्ण देवताओं और मुनिवरों की उस सभा में आये। उन जगदीश्वर को आये हुए देखकर स्वयं ब्रह्मा, शम्भु, शेषनाग, धर्म और सूर्य आदि सभी सभासद बड़ी उतावली के साथ अपने-अपने आसनों से उठकर खड़े हो गये। फिर देवगण, मुनिगण, कार्तिकेय, गणेश, भगवान ब्रह्मा, शिव और अनन्त आदि ने पृथक-पृथक परमेश्वर श्रीकृष्ण की स्तुति की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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