ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 32
शिवजी का परशुराम को मन्त्र, ध्यान, पूजाविधि और स्तोत्र प्रदान करना परशुराम ने कहा– नाथ! जो सम्पूर्ण अंगों की रक्षा करने वाला, सुखदायक, मोक्षप्रद, सारसर्वस्व तथा शत्रुओं के संहार का कारण है, वह कवच तो मुझे प्राप्त हो गया। सामर्थ्यशाली भगवन! अब मुझ अनाथ को मन्त्र, स्तोत्र और पूजाविधि प्रदान कीजिये; क्योंकि आप शरणागत के पालक हैं। महादेव जी बोले– भृगुनन्दन! ‘ऊँ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा’ यह सप्तदशाक्षर महामन्त्र सभी मन्त्रों में मन्त्रराज है। मुनिवर! पाँच लाख जप करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। उस समय जप का दशांश हवन, हवन का दशांश अभिषेक, अभिषेक का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन करने का विधान है तथा सौ मोहरें इस पुरश्चरण की दक्षिणा बतायी गयी हैं। मुने! जिस पुरुष को यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है, उसके लिये विश्व करतलगत हो जाता है। वह समुद्रों को पी सकता है, विश्व का संहार करने में समर्थ हो जाता है और इसी पाञ्चभौतिक शरीर से वैकुण्ठ में जा सकता है। उसके चरणकमल की धूलि के स्पर्शमात्र से सारे तीर्थ पवित्र हो जाते हैं और पृथ्वी तत्काल पावन हो जाती है। मुने! जो भोग और मोक्ष प्रदाता है, सर्वेश्वर श्रीकृष्ण का वह सामवेदोक्त ध्यान मेरे मुख से श्रवण करो। जो रत्ननिर्मित सिंहासन पर आसीन हैं; जिनका वर्ण नूतन जलधर के समान श्याम है; नेत्र नीले कमल की शोभा छीने लेते हैं; मुख शारदीय पूर्णिमा के चन्द्रमा को मात कर रहा है, उस पर मन्द मुस्कान की मनोहर छटा छायी हुई है। जो करोड़ों कामदेवों की भाँति सुन्दर, लीला के धाम, मनोहर और रत्नों के आभूषणों से विभूषित हैं। जिनके सम्पूर्ण अंगों में चन्दन की खौर लगी है। जो श्रेष्ठ पीताम्बर धारण किये हुए हैं। मुस्कराती हुई गोपियाँ सदा जिनकी ओर निहार रही हैं। जो प्रफुल्ल मालती-पुष्पों की माला तथा वनमाला से विभूषित हैं। जो सिर पर ऐसी कलँगी धारण किये हुए हैं, जिसमें कुन्द-पुष्पों की बहुतायत है, जो कर्पूर से सुवासित हैं और चन्द्रमा एवं ताराओं से युक्त आकाश की प्रभा का उपहास कर रही है। जिनके सर्वांग में रत्नों के भूषण सुशोभित हैं। जो राधा के वक्षःस्थल में विराजमान रहते हैं। सिद्धेन्द्र, मुनीन्द्र और देवेन्द्र जिनकी सेवा में लगे रहते हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश और श्रुतियाँ जिनका स्तवन करती रहती हैं; उन श्रीकृष्ण का मैं भजन करता हूँ। जो मनुष्य इस ध्यान से श्रीकृष्ण का ध्यान करके षोढशोपचार समर्पित कर भक्तिपूर्वक उनका भलीभाँति पूजन करता है, वह सर्वज्ञत्व प्राप्त कर लेता है। (पूजन की विधि यों हैं)– पहले भगवान को भक्तिपूर्वक अर्घ्य, पाद्य, आसन, वस्त्र, भूषण, गौ, अर्घ्य, मधुपर्क, परमोत्तम यज्ञसूत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुनः आचमन, अनेक प्रकार के पुष्प, सुवासित ताम्बूल, चन्दन, अगुरु, कस्तूरी, मनोहर दिव्य शय्या, माला और तीन पुष्पांजलि निवेदित करना चाहिये। तदनन्तर षडंग की पूजा करके फिर गण की विधिवत पूजा करे। तत्पश्चात श्रीदामा, सुदामा, वसुदामा, हरिभानु, चन्द्रभानु, सूर्यभानु और सुभानु– इन सातों श्रेष्ठ पार्षदों का भक्तिभाव सहित पूजन करे। फिर जो गोपीश्वरी, मूलप्रकृति, आद्याशक्ति, कृष्णशक्ति और कृष्ण द्वारा पूज्य हैं, उन राधिका की भक्तिपूर्वक पूजा करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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