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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 42
अनरण्य की पुत्री पद्मा की धर्म द्वारा परीक्षा, सती पद्मा का उनको शाप देना तथा शाप से उनकी रक्षा की व्यवस्था करना, वसिष्ठ जी का हिमवान को संक्षेप से सती के देह-त्याग का प्रसंग सुनाना वसिष्ठ जी कहते हैं– गिरिराज! जैसे लक्ष्मी नारायण की सेवा करती हैं, उसी प्रकार अनरण्य की कन्या पद्मा मन, वाणी और क्रिया द्वारा भक्तिभाव से पिप्पलादमुनि की सेवा करने लगी। एक दिन वह सती राजकुमारी स्नान करने के लिये गंगा जी के तट पर गयी। मार्ग में राजा का वेष धारण किये हुए साक्षात धर्म ने उसके मन के भावों को जानने के लिये पवित्र भावना से ही कामी पुरुष की भाँति कुछ बातें कहीं। उन्हें सुनकर पद्मा बोली– ‘ओ पापिष्ठ नृपाधम! दूर चला जा, दूर चला जा। यदि तू मेरी ओर कामदृष्टि से देखेगा तो तत्काल भस्म हो जायेगा। जिनका शरीर तपस्या से परम पवित्र हो गया है; उन मुनिश्रेष्ठ पिप्पलाद को छोड़कर क्या मैं तेरे-जैसे स्त्री के गुलाम तथा रति-लम्पट की सेवा स्वीकार करूँगी? मैं तेरे लिये माता के समान हूँ तो भी तू भोग्या स्त्री का भाव लेकर मुझसे बात कह रहा है। इसलिये मैं शाप देती हूँ कि कालक्रम में तेरा क्षय हो जायेगा।’ सती का शाप सुनकर देवेश्वर धर्म काँपने लगे और राजा का रूप छोड़ अपनी मूर्ति धारण करके उससे बोले। धर्म ने कहा– मातः! आप मुझे धर्मज्ञों के गुरु का भी गुरु धर्म समझिये। पतिव्रते! मैं सदा परायी स्त्री के प्रति माता का ही भाव रखता हूँ। मैं आपके आन्तरिक भाव को समझने के लिये ही आया था। यद्यपि आप-जैसी सतियों का मन कैसा होता है, यह मैं जानता था; तथापि दैव से प्रेरित होकर परीक्षा करने के लिये चला आया। साध्वि! आपने जो मेरा दमन किया है, वह नीति के विरुद्ध नहीं है सर्वथा उचित ही है; क्योंकि कुमार्ग पर चलनेवालों के लिये दण्ड का विधान साक्षात परमेश्वर श्रीकृष्ण ने ही किया है। जो धर्म को भी स्वधर्म का ज्ञान कराने और काल की भी कलना (गणना) तथा स्रष्टा की भी सृष्टि करने में समर्थ हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। जो समय पर संहर्ता का भी संहार करने की शक्ति रखते हैं और अनायास ही स्रष्टा की भी सृष्टि कर सकते हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। जो शत्रु को भी मित्र बना सकते हैं तथा सृष्टि और विनाश की भी क्षमता रखते हैं; उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। जो सबको शाप, सुख, दुःख, वर, सम्पत्ति और विपत्ति भी देने में समर्थ हैं; उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। जिन्होंने प्रकृति को प्रकट किया है, महाविष्णु तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर आदि को उत्पन्न किया है; उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। जिन्होंने दूध को श्वेत, जल को शीतल और अग्नि को दाहिका शक्ति से सम्पन्न बनाया है; उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। जो अत्यन्त तेजःपुंज से प्रकट होते हैं, जिनकी मूर्ति तेजोमयी है तथा जो गुणों से श्रेष्ठ एवं निर्गुण हैं; उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है और जो सर्वरूप, सर्वबीजस्वरूप, सबके अन्तरात्मा तथा समस्त जीवों के लिये बन्धुस्वरूप हैं; उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। यों कहकर जगद्गुरु धर्म पद्मा के सामने खड़े हो गये। शैलराज! धर्म का परिचय पाकर वह साध्वी सहसा बोल उठी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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