ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 17
वीरभद्र, नन्दीश्वर, महाकाल, सुभद्रक, विशालाक्ष, बाणासुर, पिंगलाक्ष, विकम्पन, विरूप, विकृति, मणिभद्र, बास्कल, कपिलाक्ष, दीर्घदंष्ट्र, विकट, ताम्रलोचन, कालंकट, बलीभद्र, कालजिह्व, कुटीचर, बलोन्मत्त, रणश्लाघी, दुर्जय, दुर्गम, आठों भैरव, ग्यारहों रुद्र, आठों वसु, इन्द्र आदि देवता, बारहों सूर्य, अग्नि, चन्द्रमा, विश्वकर्मा, दोनों अश्विनीकुमार, कुबेर, यमराज, जयन्त, नलकूबर, वायु, वरुण, बुध, मंगल, धर्म, शनि, ईशान और प्रतापी कामदेव आदि भी आ गये। साथ ही, उग्रदंष्ट्रा, उग्रचण्डा, कोटरा, कैटभी तथा स्वयं सौ भुजा वाली भयंकर भगवती भद्रकाली देवी भी वहाँ आ गयीं। वे देवी अतिशय श्रेष्ठ रत्न द्वारा निर्मित विमान पर बैठी थीं। उनका विग्रह लाल रंग के वस्त्र से सुशोभित था। उनके गले में लाल पुष्पों की माला थी। सभी अंग लाल चन्दन से अनुलिप्त थे। नाचना, हँसना, हर्ष के उल्लास में भरकर मीठे स्वरों में गाना, भक्तों को अभय प्रदान करना तथा शत्रुओं को डराना उन अभय स्वरूपिणी भगवती भद्रकाली का सहज गुण बन गया था। उनके मुख में बड़ी विकराल लंबी जीभ लपलपा रही थी। शंख, चक्र, गदा, पद्म, ढाल, तलवार, धनुष, बाण, एक योजन विस्तृत वर्तुलाकार गम्भीर खप्पर, गगनचुम्बी त्रिशूल, एक योजन में फैली हुई शक्ति, मुद्गर, मुसल, वज्र, पाश, खेटक, प्रकाशमान फलक, वैष्णवास्त्र, वारुणास्त्र, आग्नेयास्त्र, नागपाश, नारायणास्त्र, ब्रह्मास्त्र, गन्धर्व, गरुड़, पार्जन्य एवं पाशुपतास्त्र, जृम्भणास्त्र, पार्वतास्त्र, माहेश्वरास्त्र, वायव्यास्त्र, सम्मोहन दण्ड, शतशः अमोघास्त्र तथा सैकड़ों दिव्यास्त्र]] को धारण करके भगवती भद्रकाली अनन्त योगिनियों के साथ वहाँ आकर विराज गयीं। उनके साथ में अत्यन्त भयंकर असंख्य डाकिनियों का यूथ भी सुशोभित था। भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्माण्ड, ब्रह्मराक्षस, वेताल, राक्षस, यक्ष और किन्नर भी सहयोग देने के लिये आ पहुँचे। इन सबको साथ लेकर स्वामी कार्तिकेय ने अपने पिता चन्द्रशेखर शिव को प्रणाम किया और सहायता करने के विचार से उनकी आज्ञा लेकर पास बैठ गये। इधर दूत के चले जाने पर प्रतापी शंखचूड़ अन्तःपुर में गया और उसने अपनी पत्नी तुलसी से युद्ध सम्बन्धी बातें बतायीं। सुनते ही तुलसी के होंठ और तालु सूख गये। उसका हृदय संतप्त हो उठा। फिर परम साध्वी तुलसी मधुर वाणी में कहने लगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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