महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
92.दुर्योधन का अंत
दुर्योधन ने जब स्वयं युधिष्ठिर के मुख से ये कठोर बातें सुनीं तो उसने गदा उठा ली और जल में ही उठ खड़ा हुआ और बोला- "अच्छा! यही सही! तुम एक-एक करके मुझसे भिड़ लो! मैं अकेला हूँ और तुम पांच हो। पांचों का अकेले के साथ लड़ना न्यायोचित नहीं। फिर तुम पांचों तरोताजा हो। मैं थका हुआ और घायल हूँ। कवच भी मेरे पास नहीं है। इसलिये एक-एक करके निपट लो। चलो!" यह सुनकर युधिष्ठिर बोले- "यदि अकेले पर कइयों का हमला करना धर्म नहीं, तो बालक अभिमन्यु कैसे मारा गया था? तुम्हारी ही तो अनुमति पाकर उस एक बालक को सात-सात महारथियों ने मिलकर धर्म के विरुद्ध लड़कर मारा था न! तब धर्म का ध्यान नहीं रखा? पर बात यह है कि जब अपने पर संकट पड़ता है तब धर्मशास्त्र का उपदेश सभी लोग देने लग जाते हैं। इस कारण अब बकवास बंद करो और निकल आओ जलाशय से। पहन लो कवच और हममें से जिस किसी से भी चाहो, द्वंद्व-युद्ध कर लो। यदि मारे गये तो स्वर्ग पाओगे और यदि जीत गये, तो सारे राज्य के तुम्हीं स्वामी बनोगे।" यह सुन दुर्योधन जलाशय से बाहर निकल आया और उसने भीम से गदा-युद्ध करने की इच्छा प्रकट की। भीम भी राजी हो गया और दोनों में गदा-युद्ध शुरू हो गया। दोनों की गदायें जब एक-दूसरे से टकरातीं तो उनमें से चिनगारियां निकल पड़ती थीं। इस तरह बड़ी देर तक युद्ध जारी रहा। इसी बीच दर्शक लोग आपस में चर्चा करने लगे कि दोनों में जीत किसकी होगी। श्रीकृष्ण ने इशारों में ही अर्जुन को बताया कि भीम दुर्योधन की जांघ पर गदा मारेगा तो जीत जायेगा। भीमसेन ने श्रीकृष्ण का यह इशारा तुरंत भांप लिया और अचानक सिंह की भाँति दुर्योधन पर झपटा और उसकी जांघ पर जोर की गदा का प्रहार किया। जांघ पर गदा की चोट लगनी थी कि दुर्योधन धड़ाम से पृथ्वी पर कटे पेड़ की भाँति गिर पड़ा यह देख भीम और उन्मत्त हो गया। उसका पुराना वैर मूर्तिमान हो उठा। उसी उन्मत्त अवस्था में उसने आहत पडे हुए दुर्योधन के माथे पर जोर से एक लात जमाई। भीम का यह कार्य श्रीकृष्ण को ठीक न लगा। वह बोले- "भीमसेन! अब बस करो! तुमने अपना ऋण चुका दिया, तुम्हारा वचन पूरा हुआ। फिर भी दुर्योधन क्षत्रिय राजा है और हमारे ही कुल का हैं इसलिये यह ठीक नहीं कि तुम उसके माथे पर इस प्रकार लात मारो। यह पापी तो शीघ्र ही अपनी मौत मारा जायेगा। अब हम यहाँ खड़े ही क्यों रहें? दुर्योधन और उसके साथी-संगी अब नष्ट हो चुके हैं। चलो, हम अपने स्थान को चलें।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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