21.अग्र-पूजा
किसी सभा की कार्रवाई पसन्द न आने पर अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए सभा से कुछ लोगों के इकट्ठे उठकर चले जाने की प्रथा प्रजा-सत्तावाद की कोई नई उपज नहीं है; बल्कि वह मुद्दत से चली आ रही है। ‘वाक-आउट’ की यह प्रथा हमारे देश में जमाने से प्रचलित थी। इसका सबूत महाभारत में मिलता है।
जिस समय पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया था, भारतवर्ष में छोटे-बड़े राजाओं की संख्या काफी थी। सारे भारत के राजा तथा प्रजा के लोग एक ही धर्म के अनुयायी थे; एक-जैसी ही उन सबकी संस्कृति थी। कोई राजा किसी दूसरे राजा के राज्य या सत्ता पर प्राय: आक्रमण नहीं करता था। हां, कभी-कभी कोई शक्तिशाली और साहसी राजा सारे देश के नरेशों के पास अपना प्रतिनिधि भेज देता और राजाधिराज बनने (सम्राट की उपाधि धारण करने) के लिए उनकी स्वीकृति प्राप्त करता। यह ‘दिग्विजय’ अक्सर बगैर किसी लड़ाई-झगड़े के पूर्ण हो जाया करती। जिस राजा को सम्राट बनना होता, वह राजसूय नाम का महायज्ञ करता। इस यज्ञ में सभी राजा सम्मिलित होते और सम्राट की सत्ता मानने की रस्म अदा करके अपने-अपने राज्य को लौट जाते। इसी प्रथा के अनुसार, जरासंध के वध के बाद पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया। इसमें भारत-भर के राजा आये हुए थे। जब अभ्यागत नरेशों का आदर-सत्कार करने की बारी आई तो प्रश्न उठा कि 'अग्रपूजा' किसकी हो? सम्राट युधिष्ठिर ने इस बारे में पितामह भीष्म से सलाह ली।
वृद्ध भीष्म ने कहा कि द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की पूजा पहले की जाये। युधिष्ठिर को भी यह बात पसन्द आई। उन्होंने छोटे भाई सहदेव को आज्ञा दी कि वह भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करे। सहदेव ने विधिवत श्रीकृष्ण की पूजा की और गाय, अर्ध्य, मधुपर्क आदि उन्हें भेंट किये। वासुदेव का इस प्रकार गौरवान्वित होना चेदि-नरेश शिशुपाल को अच्छा न लगा। वह एकाएक उठ खड़ा हुआ और ठहाका मारकर हंस पड़ा।
सारी सभा की दृष्टि जब शिशुपाल की ओर गई तो वह ऊंचे स्वर में व्यंग्य भाव से बोलने लगा- "यह अन्याय की बात है कि एक मामूली-से व्यक्ति को इस प्रकार गौरवान्वित किया जाता है। किन्तु इसमें आश्चर्य की भी बात क्या है? यहाँ के लोगों की बातें ही उल्टी होती हैं। जिसने सलाह मांगी उसका जन्म भी तो उल्टी रीति से ही हुआ था और जिसने सलाह दी, वह भी नीचे की ओर जाने वाली का ही बेटा है! फिर जिसने आज्ञा मानकर पूजा की, उसके पिता का भी तो पता नहीं है ! ये हुए सत्कार करने वाले! और जिसने पूजा स्वीकार की, उस गाय चराने वाले के घर में पले अनाड़ी की कहानी किससे छुपी है? इस उल्टी कार्यवाही को जो सभासद चुपचाप देख रहे हैं, मैं तो कहूंगा वे गूंगे हैं। उनका इस सभा में बैठे रहना अपनी सज्जनता पर बट्टा लगाना है।"
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