महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
71.आठवां दिन
आठवें दिन सवेरे भीष्म ने कौरव-सेना की व्यूह–रचना कछुए की शक्ल में की। इस पर युधिष्ठिर धृष्टद्युम्न से बोले– "कौरवों के कूर्म-व्यूह को देखकर अपनी सेना की व्यूह-रचना इस तरह करो कि जिससे शत्रु-व्यूह को तोड़ा जा सके। जल्दी उसकी व्यवस्था होनी चाहिये।" तब धृष्टद्युम्न ने पांडवों की सेना की तीन शिखरों (चोटियों) वाले व्यूह में रचना की। इस व्यूह के एक सिरे पर भीमसेन और दूसरे सिरे पर सात्यकि अपनी-अपनी सेनाएं लेकर मुस्तैदी से खड़े हो गये। बीच वाले सिरे पर स्वयं युधिष्ठिर खड़े रहे। सामरिक कला में हमारे पूर्वजों को काफी प्रवीणता प्राप्त थी। लड़ने के तौर-तरीकों के बारे में यद्यपि कोई सुविस्तृति शास्त्र तो नहीं रचा गया, फिर भी प्राय: सभी क्षत्रियों को उनका परम्परागत ज्ञान पीढी-दर-पीढी प्राप्त होता चला जाता था। शत्रु-पक्ष के अस्त्र-शस्त्र तथा उन शस्त्रों की शक्ति इत्यादि बातों को देखते हुए, उस समय की प्रचलित युद्ध-पद्धति के अनुसार उन दिनों के राजा लोग अपने अस्त्र-शस्त्रों एवं तौर-तरीकों में आवश्यक परिवर्तन और परिवर्द्धन भी समय-समय पर कर लेते थे। कुरुक्षेत्र के युद्ध को हुए कई हजार वर्ष हो चुके हैं। अत: महाभारत में जिस युद्ध का वर्णन है, उसकी आजकल के युद्ध की कार्रवाइयों के साथ तुलना करके उसे कोरी कल्पना ठहरा देना या निरर्थक बतंगड़ समझना उचित नहीं। अभी डेढ़ सौ साल हुए इंग्लैंड के वीर नेलसन ने अपनी सुप्रसिद्ध नौ-सेना को लेकर फ्रांसीसियों के छक्के छुड़ा दिये थे, किन्तु यदि उसी विजेता नेलसन के जहाजों और हथियारों की तुलना आजकल की नौ-सेना व हथियारों से की जाये तो उसके समय की लड़ाइयां विलक्षण ही प्रतीत होंगी! यदि डेढ़ ही सौ बरस के पहले की परिस्थिति यह थी तो महाभारत-युद्ध के समय की बात तो पूछना ही क्या है! एक बात और भी है, जिसे हमें ध्यान में रखना चाहिये। युद्ध को ही विषय बनाकर जो काव्य या आख्यान-ग्रंथ रचा जाये, उससे युद्ध की कार्रवाइयों एवं विभिन्न हथियारों का प्रामाणिक विवरण तथा व्याख्यान की आशा नहीं की जा सकती। हमारे यहाँ प्राचीनकाल में युद्ध के जो तौर-तरीके और पद्धति प्रचलित थी, वह क्षत्रियोचित संस्कृति का ही एक अंग मानी जाती थी। युद्ध के तौर-तरीकों के रहस्य एवं गतिविधि का ज्ञान उन्हीं लोगों तक सीमित रहा जिनका उनसे काम पड़ता था। कवियों या ऋषियों के रचित ग्रंथों में उन पद्धतियों की व्याख्या या विवरण नहीं पाये जा सकते। आजकल के किसी ग्रन्थ या उपन्यास में कहीं किसी रोग के इलाज का पूरा जिक़्र हो तो लेखक से इस बात की तो आशा नहीं की जाती कि वह इलाज का पूरा विवरण, दवाओं की सूची-सहित देता जाये। यदि दे भी तो भी युद्ध-प्रणाली के पूरे शास्त्र की आशा रखना सर्वथा अनुचित होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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