महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
93.पांडवों का शर्मिन्दा होना
कुरुक्षेत्र का युद्ध पूरा भी नहीं हुआ था कि श्रीकृष्ण के बड़े भाई हलधर श्रीबलराम अपनी तीर्थयात्रा समाप्त करके वापस आ गये। उसी समय भीम और दुर्योधन का गदा-युद्ध समाप्त ही हुआ था। जब बलराम को पता चला कि भीमसेन ने दुर्योधन की जांघ पर गदा-प्रहार किया तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया। वह भीम को घृणा से देखते हुए बोले- "धिक्कार है तुमको भीम, जो तुमने कमर के नीचे गदा मारकर गदा-युद्ध के नियम को भंग किया। तुम्हें नहीं मालूम कि ऐसा करना अनुचित है!" भीम के व्यवहार से बलराम को इतना क्रोध आया कि वह उनसे सहा न गया। वह श्रीकृष्ण से बोले- "भैया कृष्ण! तुम तो अन्याय और अनीति को सह लेते हो, पर मुझसे अनीति होते नहीं देखी जाती। मैं अनीति करनेवालों को जरूर दंड दूंगा।" यों कहते-कहते बलराम अपना हल हाथ में लेकर भीमसेन पर झपटे। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा कि बलराम बहुत क्रोध में हैं और गुस्से में न जाने क्या अनर्थ कर डालें तो उनका रास्ता रोककर खड़े हो गये और उनको समझाते हुए बोले- "भैया, आप जरा शांत होकर सोचिये। पांडव हमारे मित्र हैं। निकट के संबंधी हैं। वे दुर्योधन के अत्याचारों से पीड़ित हुए हैं। जब द्रौपदी का भरी सभा में अपमान किया गया था तभी भीम ने अपनी गदा से दुर्योधन की जांघें तोड़ने की प्रतिज्ञा की थी। सब लोग भीम की इस प्रतिज्ञा से परिचित हैं और स्वयं दुर्योधन भी भीमसेन की इस प्रतिज्ञा को जानता है। फिर आप जानते ही हैं कि अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना तो क्षत्रियों का धर्म ही है! इसलिये मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप उतावले न होइये। पांडव निर्दोष हैं। उनसे नाराज न होइये। सिर्फ एक ही घटना को लेकर धर्माधर्म का विवेचन करना ठीक नहीं हैं भीम का काम न्याययुक्त है या नहीं, इस बात का निर्णय करने से पहले दुर्योधन के किये अत्याचारों पर भी ध्यान देना होगा। अब तो कलियुग का आरम्भ हो रहा है। इसमें तो अन्याय का बदला अन्याय ही माना जायेगा। अतः दुर्योधन के किये कई अन्यायों और छल-प्रपंचों के बदले यदि भीमसेन ने कटि के नीचे गदा-प्रहार कर भी दिया, तो वह अधर्म कैसे हो सकता है? इसी दुर्योधन की प्रेरणा से -उसके उकसाने पर पीछे से बाण मारकर हमारे अभिमन्यु का धनुष काट दिया गया था। जब अर्जुन का पुत्र रथ-विहीन होकर बिना धनुष के जमीन पर खड़ा था, तभी उस पर बहुत से महारथियों ने एक साथ हमला करके उसे मार डाला। भीमसेन इसको मार भी डालता तो भी यह कोई अधर्म या अन्याय नहीं होता फिर यह भी सोचिये कि बार-बार इसने पांडवों पर अत्याचार किये और व्यर्थ में उनसे युद्ध भी छेड़ा। तब फिर यह बात कैसे भूली जा सकती है कि मौका आने पर भीमसेन अपनी प्रतिज्ञा का पालन न करेगा? इस कारण भीम के इस कृत्य को एकदम अन्याय नहीं कहा जा सकता।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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