महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
66.तीसरा दिन
तीसरे दिन सवेरे भीष्म ने अपनी सेना की गरुड़ के आकार में व्यूह-रचना की और उसके अगले सिरे का बचाव दुर्योधन के जिम्मे किया। सब प्रकार की तैयारियां बड़ी सतर्कता के साथ की गई थीं। इसलिये कौरवों को दृढ़ विश्वास था कि शत्रु आज हमारा व्यूह तोड़ ही नहीं सकेंगे। उधर पांडवों ने भी बड़ी सतर्कता के साथ व्यूह-रचना की। अर्जुन और धृष्टद्युम्न ने सलाह करके कौरवों का गरुड़-व्यूह तोड़ने के उद्देश्य से अपनी सेना का व्यूह अर्द्ध-चन्द्र की शक्ल में बनाया। एक सिरे पर भीमसेन और दूसरे पर अर्जुन रक्षा करने के लिये खड़े हो गये कि जिससे सेना का बचाव भली-भाँति हो सके। इस प्रकार दोनों सेनाओं की व्यूह-रचना हो जाने के बाद दोनों पक्ष फिर युद्ध में लग गये और एक-दूसरे पर हमला करने लगे। दोनों सेनाओं की टुकड़ियां इस प्रकार आपस में एक-दूसरे से गुंथ गईं और उनमें इतना भीषण संग्राम होने लगा कि रथों, हाथियों और घोड़ों के तेज चलने के कारण धूल उड़कर आकाश में छा गई, जिसके कारण सूरज भी छिप गया। अर्जुन ने कौरव-सेना पर बड़ा भीषण हमला किया। फिर भी वह शत्रु सैन्य का मोर्चा न तोड़ सका। कौरव-सेना के वीरों ने भी पांडवों की कतारें तोड़ने की चेष्टा की और वे अपनी सारी शक्ति लेकर अर्जुन पर टूट पड़े। कौरव-वीरों ने अपने सब प्रकार के तेज हथियारों से अर्जुन के रथ पर भीषण हमला कर दिया। टिड्डी-दल की भाँति अपनी ओर आते हुए उन हथियारों को अर्जुन ने अपनी रण-कुशलता से रोक लिया और बड़ी तेजी से अपने चारों ओर बाण चलाते हुए उसने बाणों का एक घेरा-सा खड़ा कर दिया और इस प्रकार शत्रु-दल के भयानक हथियारों को निकम्मा कर दिया। उधर दूसरी ओर शकुनि को भारी सेना के साथ आया देखकर सात्यकि और अभिमन्यु ने उसका मुकाबला किया। शकुनि भी बड़ा कुशल योद्धा था। सात्यकि के रथ को उसने तहस-नहस कर दिया। इससे सात्यकि जोश में आ गया और अभिमन्यु के रथ पर चढकर शकुनि की सेना पर भीषण हमला करके उसे नष्ट कर दिया। युधिष्ठिर जिस सेना का संचालन कर रहे थे, उस पर भीष्म और द्रोणाचार्य एक साथ टूट पड़े। यह देखकर नकुल और सहदेव युधिष्ठिर की सहायता करने दौड़ पड़े और द्रोणाचार्य की सेना पर बाणों से जोरों से हमला बोल दिया। उधर भीम और घटोत्कच ने एक साथ दुर्योधन पर हमला कर दिया। घटोत्कच ने ऐसी कुशलता का परिचय दिया कि उसके सामने स्वयं भीमसेन का पराक्रम भी फीका पड़ गया। भीमसेन के चलाए एक बाण से दुर्योधन जोर का धक्का खाकर बेहोश हो गया और रथ पर गिर पड़ा। यह देख उसके सारथी ने सोचा कि दुर्योधन को लड़ाई के मैदान से हटा लिया जाय, जिससे कौरव-सेना को दुर्योधन के मूर्च्छित होने का पता न चले। उसे भय हुआ कि अगर सेना को पता चल गया कि दुर्योधन मूर्च्छित हो गया है तो खलबली मच जायेगी और व्यूह-रचना टूट जायेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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