महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
17.इन्द्रप्रस्थ
द्रौपदी के स्वयंवर में जो-कुछ हुआ, उसकी खबर जब हस्तिनापुर पहुँची तो धर्मात्मा विदुर बड़े खुश हुए। धृतराष्ट्र के पास दौड़े गये और बोले, "धृतराष्ट्र, हमारा कुल शक्ति-सम्पन्न हो गया है। राजा द्रुपद की पुत्री हमारी बहू बन गई है। हमारे भाग्य जाग गये। आज बड़ा सुदिन है।" धृतराष्ट्र ने अपने बेटे के प्रति अन्ध-प्रेम के कारण विदुर की बात का गलत अर्थ समझा। दुर्योधन भी तो स्वयंवर में गया था न! सो उन्होंने समझा कि दुर्योधन ने द्रौपदी को स्वयंवर में प्राप्त किया। बोले, "अहोभाग्य है हमारा। विदुर अभी जाकर बहू द्रौपदी को ले आओ और पांचालराज की बेटी का खूब धूमधाम से स्वागत करने का प्रबन्ध करो। चलो, जल्दी करो।" तब विदुर असली बात उन्हें बताते हुए बोले- "भाग्यशाली पांडव अभी जीवित है। राजा द्रुपद की कन्या को स्वयंवर में अर्जुन ने प्राप्त किया है। पांचों भाइयों ने विधिपूर्वक द्रौपदी के साथ ब्याह कर लिया है और देवी कुन्ती के साथ वे सब द्रुपद के यहाँ कुशल से हैं।" यह सुन धृतराष्ट्र सहम से गये। उनका उत्साह ठंडा पड़ गया। पर उसे प्रकट न करके हर्ष का बहाना करते हुए बोले- "भाई विदुर! तुम्हारी बातों से मुझे असीम आनन्द हो रहा है। क्या सचमुच मेरे भाई पाण्डु के पुत्र जीवित हैं? वे कुशल से तो हैं? मैं कितना शोक मना रहा था, कितना व्याकुल हो रहा था उनकी मृत्यु के समाचार से! तुम्हारे इस समाचार ने मेरे तप्त हृदय पर मानो अमृत बरसा दिया। आनन्द मेरे अन्दर समा नहीं रहा है। राजा द्रुपद की बेटी हमारी बहू बन गई है, यह बड़ा ही अच्छा हुआ। हमारे अहोभाग्य!" उधर दुर्योधन को जब मालूम हुआ कि पांडवों ने लाख के घर की भीषण आग से किसी तरह बचकर और एक बरस तक कहीं छिपे रहने के बाद अब पराक्रमी पांचालराज की कन्या से ब्याह कर लिया है और पहले से भी अधिक शक्तिशाली बन गये हैं, तो उनके प्रति उसके मन में ईर्ष्या की आग और अधिक प्रबल हो उठी। दबा हुआ वैर फिर से जाग उठा। दुर्योधन और दुःशासन ने शकुनि को अपना दुखड़ा सुनाया, "मामा, अब क्या करें? निकम्मे पुरोचन ने हमें कहीं का न रक्खा। हमारी चाल बेकार हो गई। सचमुच ही हमारे वैरी पाण्डव चतुरता में हमसे कहीं बढ़े-चढ़े निकले। दैव भी उन्हीं का साथ दे रहा है। मृत्यु तो उनके पास तक नहीं फटकती और अब तो द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न और शिखंडी भी उनके साथी बन गये। मामा, हमें तो अब डर लगने लगा है। आप कोई-न-कोई कारगर उपाय बताइये।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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