महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
26.धृतराष्ट्र की चिन्ता
द्रौपदी को साथ लेकर पांडव वन की ओर जाने लगे। उनको देखने की इच्छा से सड़क पर नगर के लोगों की इतनी भीड़ इकट्ठी हो गई कि सड़कों पर चलना असंभव हो गया। ऊंचे भवनों में, मंदिरों के गोपुरों में और पेड़ों पर बैठे लोग पांडवों को देखने जमा हो गये। स्त्रियां अट्टालिकाओं तथा झरोखों से देख रही थीं। राजाधिराज युधिष्ठिर को, जो छतरी और बाजों के समेत रथारूढ़ होकर जाने योग्य थे, वल्कल और मृगचर्म पहने, पैदल जाते देख लोगों में हाहाकार मच गया। कुछ लोगों ने हाय-हाय की, कुछ ने 'छी:-छी:' करके कौरवों को धिक्कारा। सबकी आंखों में आंसू उमड़ आये। धृतराष्ट्र ने विदुर को बुला भेजा और पूछा- विदुर, पाण्डु के बेटे और द्रौपदी कैसे जा रहें हैं? मैं अन्धा हूं! देख नहीं सकता। तुम्हीं बताओ, कैसे जा रहे हैं वे?" विदुर ने कहा- "कुन्ती-पुत्र युधिष्ठिर कपड़े से चेहरा ढांक कर जा रहे है। भीमसेन अपनी दोनों भुजाओं को निहारता, अर्जुन हाथ में कुछ बालू लिये उसे बिखेरता, नकुल और सहदेव सारे शरीर पर धूल रमाये हुए, क्रमश: युधिष्ठिर के पीछे-पीछे जा रहे हैं। द्रौपदी ने बिखरे हुए केशों से सारा मुख ढक लिया और आंसू बहाती हुई, युधिष्ठिर का अनुसरण कर रही है। पुरोहित धौम्य कालदेव की स्तुति में सामवेद के छन्द सस्वर गान करते हुए साथ-साथ जा रहें है।" यह वर्णन सुनकर धृतराष्ट्र की आशंका और चिन्ता पहले से भी अधिक प्रबल हो उठी। उन्होंने बड़ी उत्कंठा से पूछा- "और नगर के लोग क्या कर रहे है?" विदुर ने कहा- "महाराज! प्रत्येक जाति और वर्ण के लोग एक स्वर से यही कह रहे हैं कि धृतराष्ट्र ने लालच में पड़कर पाण्डु के बेटों को जंगल में भेज दिया। कहते हैं- "हा दैव! हमारे राजा, हमारे नायक नगर छोड़कर जा रहे है! कुरुवंश के वृद्धों को धिक्कार है, जिन्होंने नासमझ लड़कों के कहने में आकर इनके साथ ऐसा व्यवहार किया! धिक्कार है धृतराष्ट्र को, उनके लालच को! इस नगर के सभी लोग हमारी निन्दा कर रहे हैं। नीले आकाश में बिजली कांधने लगी। पृथ्वी कांप उठी और भी कितनी ही अनिष्टकारी सूचनाएं हुई।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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