महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
70.सातवां दिन
दुर्योधन का सारा शरीर घावों से भरा था। असह्य पीड़ा हो रही थी। पितामह भीष्म के पास जाकर वह बड़ा झल्लाया और बोला– "पितामह! प्रतिदिन पांडवों की ही जीत होती जा रही है। वे ही हमारे व्यूह को तोड़ते और हमारे वीरों को मौत के घाट उतारते जा रहे हैं, फिर भी न जाने आप क्यों कुछ करते-धरते नहीं?" दुर्योधन को सांत्वना देते हुए भीष्म ने उत्तर दिया– "बेटा दुर्योधन! द्रोणाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, विकर्ण, भगदत्त, शकुनि, राजा सुशर्मा, मगध नरेश, कृपाचार्य और स्वयं मुझ जैसे महारथी लोग जब तुम्हारी खातिर प्राणों तक की बलि चढ़ाने को तैयार हैं तो फिर चिंता काहे की? धीरज धरो, भगवान सब ठीक ही करेंगे।" यह कहकर भीष्म सेना की व्यूह-रचना में लग गये। जब व्यूह-रचना हो चुकी तो भीष्म बोले– "राजन! अपनी सेना को तो देखो! हजारों की संख्या में रथ-घोड़े, घुड़सवार, उत्तम हाथी, देश-विदेश से आये हुए शस्रधारी सैनिक आदि से सज्जित इस विराट सेना से मनुष्यों की कौन कहे, देवताओं तक को परास्त किया जा सकता है, फिर भय किस बात का?" यह कहकर भीष्म ने दुर्योधन को एक ऐसा लेप दिया, जिसके लगाने से दुर्योधन के सारे घाव ठीक हो गये और वह फिर से ताजा हो उठा। इससे दुर्योधन का साहस एवं उत्साह बढ़ गया और वह खुशी-खुशी फिर लड़ने को तत्पर हो गया। उस दिन कौरवों की सेना का व्यूह मंडलाकर रचा गया। एक-एक हाथी के निकट सात-सात रथ खड़े थे। हरेक रथ की रक्षा के लिये सात घुड़सवार सैनिक नियुक्त थे। एक-एक घुड़सवार का सात-सात धनुर्धारी वीर साथ दे रहे थे। एक-एक धनुर्धारी वीर का बचाव करने को दस-दस वीर ढाल लिये खड़े थे। सभी वीर अभेद्य कवच पहने हुए थे। इस सुसज्जित विशाल सेना-समूह के बीच में अपने रथ पर खड़ा दुर्योधन ऐसे शोभायमान हुआ, जैसे देवताओं की सेना में देवराज इन्द्र। उधर युधिष्ठिर ने पांडवों की सेना को ‘वज्र-व्यूह’ में रचवाया। उस दिन का युद्ध केन्द्रित न था, बल्कि कई मोर्चों पर व्याप्त था। प्रत्येक मोर्चे पर विख्यात वीरों में घमासान युद्ध होता रहा। एक मोर्चे पर अर्जुन के विरुद्ध स्वयं भीष्म डटे हुए थे। एक स्थान पर द्रोणाचार्य और विराटराज में भीषण युद्ध हो रहा था। दूसरे एक मोर्चे पर शिखंडी और अश्वत्थामा में लड़ाई हो रही थी। एक जगह धृष्टद्युम्न और दुर्योधन भिड़े हुए थे। एक ओर नकुल और सहदेव अपने मामा शल्य पर बाण बरसा रहे थे। दूसरी ओर अवंती के दोनों राजा युधामन्यु से लड़ते दिखाई दे रहे थे। एक मोर्चे पर दुर्योधन के चार भाइयों की अकेला भीमसेन खबर ले रहा था, तो दूसरे मोर्चे पर घटोत्कच और भगदत्त में भयानक द्वन्द्व छिड़ा हुआ था। एक और मोर्चे पर अलम्बुष और सात्यकि की टक्कर थी तो कहीं दूर पर भूरिश्रवा धृष्टद्युम्न का मुकाबला कर रहे थे। युधिष्ठिर का श्रुतायु के साथ द्वंद्व हो रहा था, जबकि कृपाचार्य और चेकितान एक-दूसरे मोर्चे पर भिड़ रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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