महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
5.देवयानी का विवाह
असुर-राजा वृषपर्वा की बेटी शर्मिष्ठा और शुक्राचार्य के बेटी देवयानी एक दिन अपनी सखियों के संग वन में खेलने गईं। खेल-कूद के बाद लड़कियाँ तालाब में स्नान करने लगीं। इतने में जोरों की आंधी चली और सबके कपड़े उलट-पुलट हो गये। लड़कियां नहाकर बाहर निकल आईं और जो भी कपड़ा हाथ में आया, लेकर पहनने लगीं। इस गड़बड़ी में वृषपर्वा की बेटी शर्मिष्ठा ने धोखे से देवयानी की साड़ी पहन ली। देवयानी को विनोद सूझा। उसने शर्मिष्ठा से कहा- "अरी असुर-पुत्री! क्या तुम्हें इतना भी पता नहीं कि गुरु-कन्या का कपड़ा शिष्य की लड़की को नहीं पहनना चाहिये? सचमुच तुम बड़ी नासमझ हो।" यद्यपि देवयानी को अपने ऊँचे कुल का घमण्ड जरूर था, लेकिन यह बात उसने मज़ाक में कही थी। पर राजकुमारी शर्मिष्ठा को इससे बड़ी चोट लगी। वह मारे क्रोध के आपे से बाहर हो गई और बोली- "अरी भिखारिन! क्या भूल गई कि मेरे पिता जी के आगे तेरे गरीब बाप हर रोज सिर नवाते हैं और उनके आगे हाथ फैलाते हैं? भिखारी की लड़की होकर तेरा यह घमण्ड! अरी ब्राह्मणी! याद रख कि मैं उस राजा की कन्या हूँ जिसके लोग गुण गाते हैं। और तू उस दीन ब्राह्मण की बेटी है, जो मेरे पिता का दिया खाता है। इस फेर में न रहना कि तू किसी ऊँचे कुल की है। मैं उस कुल की हूँ जो देना जानता है, लेना नहीं; और तू उस कुल की है जो भीख माँगकर निर्वाह करता है। एक दीन ब्राह्मण की यह मजाल कि वह मुझे तमीज सिखाये! धिक्कार है तुझे और तेरे कुल को।" यों असुरराज-कन्या देवयानी पर बरस पड़ी। उसके तीखे शब्द-बाण देवयानी से न सहे गये। वह क्रुद्ध हो उठी। राज-कन्या और गुरु-कन्या में देर तक तू-तू मैं-मैं होती रही। आखिर हाथापाई तक की नौबत आई। ब्राह्मण की कन्या भला असुरराज की बेटी के आगे कहाँ ठहर सकती थी? शर्मिष्ठा ने देवयानी को जोर का थप्पड़ लगाया और उसे एक अंधे कुएँ में धकेल दिया। दैवयोग से कुआँ सूखा था। असुर-कन्या यह समझकर कि देवयानी मर चुकी होगी, महल लौट आई। देवयानी को कुएँ में गिरने से बड़ी चोट आई। कुआँ गहरा था। अतः वह अन्दर पड़ी तड़पती रही। संयोग से भरतवंश के राजा ययाति शिकार खेलते हुए उधर से आ निकले। उन्हें प्यास लगी थी और वह पानी खोजते-खोजते उस कुएँ के पास पहुँचे। कुएँ के अन्दर झाँका तो कुछ प्रकाश सा दीखा। एकदम आश्चर्यचकित रह गये। कुएँ के अन्दर उन्होंने बजाय पानी के एक तरुणी को देखा। उसका कोमल शरीर अंगारों की भाँति प्रकाशमान था और उससे सौंदर्य की आभा फूट रही थी। "तरुणी! तुम कौन हो? तुमने तो गहने पहने हुए हैं। तुम्हारे नाखून लाल हैं। तुम किसकी बेटी हो? और किस कुल की हो? कुएँ में कैसे गिर पड़ीं?" राजा ने आश्चर्य और अनुकंपा के साथ पूछा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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