महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
3.अम्बा और भीष्म
सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर पर स्वेच्छाचारी थे। एक बार किसी गन्धर्व के साथ युद्ध हुआ, उसमें वह मारे गये। उनके कोई पुत्र न था, इसलिए उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठे। विचित्रवीर्य की आयु उस समय बहुत छोटी थी, इस कारण उनके बालिग होने तक राज-काज भीष्म को ही संभालना पड़ा। जब विचित्रवीर्य विवाह के योग्य हुए, तो भीष्म को उनके विवाह की चिन्ता हुई। उन्हें खबर लगी के काशिराज की कन्याओं का स्वयंवर होने वाला है। यह जानकर भीष्म बड़े खुश हुए और स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिये काशी रवाना हो गये। काशिराज की कन्याएँ अपूर्व सुन्दरी थीं। उनके रूप और गुण का यश दूर दूर तक फैला हुआ था। इसलिए देश-विदेश के अनेक राजकुमार उनके स्वयंवर में भाग लेने के लिए आये थे। स्वयंवर-मंडप उनकी भीड़ से खचाखच भरा हुआ था। राजपुत्रियों को पाने के लिए आपस में बड़ी स्पर्धा थी। क्षत्रियों में भीष्म की प्रतिष्ठा अद्वितीय थी। उनके महान त्याग तथा भीषण प्रतिज्ञा का हाल सब जानते थे। इसलिये जब वह स्वयंवर मंडप में प्रविष्ट हुए तो राजकुमारों ने सोचा कि वह सिर्फ स्वयंवर देखने के लिये आये होंगे। परन्तु जब स्वयंवर में सम्मिलित होने वालों में उन्होंने भी अपना नाम दिया, तो अन्य कुमारों को निराश होना पड़ा। उनको क्या पता था कि दृढ़व्रती भीष्म अपने लिये नहीं, वरन् अपने भाई के लिये स्वयंवर में सम्मिलित हुए हैं। सभा में खलबली मच गई। चारों ओर से भीष्म पर फब्तियां कसी जाने लगीं- ‘माना कि भरत-श्रेष्ठ भीष्म बड़े बुद्धिमान और विद्वान हैं, किन्तु साथ ही बूढ़े भी तो हो चले हैं। स्वयंवर से इन्हें क्या मतलब? इनके प्रण का क्या हुआ? तो क्या इन्होंने सस्ते में ही यश कमा लिया? जीवन-भर ब्रह्मचारी रहने की इन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, क्या वह झूठी ही थी? इस भाँति सब राजकुमारों ने भीष्म की हँसी उड़ाई, यहाँ तक कि काशिराज की कन्याओं ने भी वृद्ध भीष्म की तरफ से दृष्टि फेर ली और उनकी अवहेलना सी करके आगे की ओर चल दीं। अभिमानी भीष्म इस अवहेलना को सह न सके। मारे क्रोध के उनकी आँखें लाल हो गईं। उन्होंने सभी इकट्ठे राजकुमारों को युद्ध के लिए ललकारा और अकेले तमाम राजकुमारों को हराकर तीनों राजकन्याओं को बलपूर्वक लाकर रथ पर बिठा लिया और हस्तिनापुर को चल दिये। सौभदेश का राजा शाल्व बड़ा वीर और स्वाभिमानी था। काशिराज की सबसे बड़ी कन्या अम्बा उस पर अनुरक्त थी और उसको ही मन में अपना पति मान लिया था। शाल्व ने भीष्म के रथ का पीछा किया और उसको रोकने का प्रयत्न किया। इस पर भीष्म और शाल्व के बीच घोर युद्ध छिड़ गया। शाल्व वीर अवश्य था, परन्तु धनुष के धनी भीष्म के आगे कब तक ठहर सकता था? भीष्म ने उसे हरा दिया, किन्तु काशिराज की कन्याओं की प्रार्थना पर उसे जीवित ही छोड़ दिया। भीष्म काशिराज की कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर पहुँचे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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