महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
91.कर्ण भी मारा गया
द्रोण के मारे जाने पर कौरव -पक्ष के राजाओं ने कर्ण को सेनापति मनोनीत किया। मद्रराज शल्य कर्ण के सारथी बने। शल्य के चलाये दैवी रथ पर बैठा हुआ कर्ण बहुत ही शोभित हो रहा था। उसके शरीर की कांति बहुत ही उज्ज्वल हो रही थी। दूसरे दिन कर्ण के सेनापतित्व में फिर से घमासान युद्ध जारी हो गया। ज्योतिषियों से पूछकर पांडवों ने भयानक युद्ध के लिए सबसे उपयुक्त समय का पता कर लिया। नियत समय पर अर्जुन ने कर्ण पर भीषण आक्रमण कर दिया। अर्जुन की रक्षा करता हुआ भीम, अपने रथ पर उसके पीछे-पीछे चला और दोनों एक साथ कर्ण पर टूट पड़े। जब दुःशासन ने यह देखा, तो भीम पर बाणों की वर्षा कर दी। उससे भीम क्रुद्ध हो उठा और बोला- "अरे दुःशासन! बस अब तू अपने को गया ही समझ। जो अत्याचार तूने किये थे उनका बदला अभी ब्याज समेत चुकाता हूँ। द्रौपदी को जिस दिन तेरे पापी हाथों ने छूआ था और तब मैंने जो शपथ ली थी, वह अब पूरी हो जायेगी।" यह कहते-कहते भीम दुःशासन पर झपटा। जिस दुरात्मा ने द्रौपदी का अपमान किया था, उसको भीम ने एक ही धक्के में जमीन पर गिरा दिया और उसका एक-एक अंग तोड़-मरोड़ डाला। "धूर्त, नीच कहीं का! तेरे इसी हाथ ने द्रौपदी के केश पकड़कर खींचने का दुःसाहस किया था। पहले उसे ही तेरे शरीर से तोड़ फेंकता हूँ। देखूं तो! अब कौन तेरी सहायता के लिये आगे बढ़ता है। कौन है तेरा साथ देने वाला! किसकी इतनी सामर्थ्य है जो तुझे मेरे हाथों से आज बचा सके! आवे तो वह सामने! जरा देखूं तो उसे! और दुर्योधन पर इस भाँति तीव्र कटाक्ष करते हुए भीमसेन ने पागलों के-से जोश में दुःशासन के लहू को चूस-चूसकर ऐसे पीने लगा, जैसे जंगली जानवर पीते हैं। उस समय भीमसेन का विकृत रूप भयानक हिंस्त्र जंतु का-सा प्रतीत हो रहा था। गरम- गरम खून पीने के बाद भीमसेन महाकाल के-से भयानक रूप में युद्ध के मैदान में नाचने-कूदने लगा और चिल्लाने लगा- "गया एक पापी इस संसार से! मेरी एक प्रतिज्ञा पूरी हुई। अब दुर्योधन की बारी है। उसका काम-तमाम करना बाकी है। वह बलिदान का बकरा किधर है? कोई कह दे उससे कि वह भी तैयार हो जाये।" भीमसेन का वह भयानक रूप, उसका वह चिल्लाना और वह उन्माद नृत्य देखकर लोगों के दिल दहल उठे। सब कांप उठे। यहाँ तक कि एक बार कर्ण का भी शरीर कांपने लगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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