महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
73.भीष्म का अंत
दसवें दिन का युद्ध शुरू हुआ। आज पांडवों ने शिखंडी को आगे किया था। आगे-आगे शिखंडी और उसके पीछे अर्जुन। शिखंडी की आड़ में अर्जुन ने पितामह के ऊपर बाण बरसाए। आज भीष्म का तेज ऐसा प्रखर हो रहा था मानो भीष्म में मध्याह्न का सूर्य। शिखंडी के बाणों ने वृद्ध पितामह का वक्ष-स्थल बींध डाला। क्षण-भर के लिये भीष्म की आंखों से मानो चिनगारियां निकलीं। ऐसा प्रतीत हुआ कि उनकी अग्निमय दृष्टि ही शिखंडी को जलाकर राख कर देगी? परन्तु पल-भर बाद ही भीष्म का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने अपने को संभाल लिया और यह सोचकर कि जीवन-संध्या समीप आ रही है, वह कुछ देर शिखंडी का प्रतिरोध किये बिना मूर्तिवत खड़े रहे। यह दृश्य देखकर सब अचंभे में आ गये। देवता तक विस्मित हो उठे। पर भीष्म के मन की बातें शिखंडी क्या जानता? वह तो बाण-पर-बाण बरसाये ही जा रहा था। भीष्म ने अपने चेहरे पर जरा भी शिकन न आने दी और शिखंडी के बाणों का प्रत्युत्तर नहीं दिया। अर्जुन ने जब यह देखा कि पितामह प्रतिरोध नहीं कर रहे हैं तो जरा जी कड़ा करके भीष्म के मर्म-स्थानों को लक्ष्य करके तीखें बाणों से बींधना शुरू कर दिया। भीष्म का सारा शरीर बिंध गया, पर इतने पर भी उनका मुख मलिन न हुआ। वह मुस्कराते हुए पास ही खड़े दु:शासन से कहने लगे– "देखो, ये बाण अर्जुन के हैं, शिखंडी के नहीं। जैसे केंकड़ी के शरीर को उसके बच्चे ही फाड़ देते हैं, उसी प्रकार अर्जुन के ये बाण मेरे शरीर को बींध रहे हैं।" अपने प्यारे पौत्र के चलाये बाणों के प्रति भी पितामह की इस प्रकार की कोमल भावना थी। भीष्म ने शक्ति-अस्र अर्जुन पर चलाया। अर्जुन ने उसे तीन बाणों से काट गिराया। अब भीष्म को यह निश्चय हो गया कि आज का युद्ध उनका आखिरी युद्ध होगा। इस कारण वह हाथ में ढाल-तलवार लेकर रथ से उतरने लगे। इतने में अर्जुन के चलाए बाणों से उनकी ढाल के टुकड़े-टुकड़े हो गये। अर्जुन का बाण बरसाना जारी था। उसके बाणों ने पितामह के शरीर में उंगली रखने की भी जगह न छोड़ी थी। पितामह के सारे शरीर पर बाण-ही-बाण चुभ गये थे और ऐसी अवस्था में ही भीष्म रथ से सिर के बल जमीन पर गिर पड़े। भीष्म के गिरने पर आकाश में खड़े देवताओं ने अपने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया और दिशाओं में सुवास-भरी मंद-मंद पवन पानी की बूंदें छिड़काती हुई चलने लगी। आकाश से पृथ्वी पर उतरकर प्राणीमात्र के शरीर तथा आत्मा का जिन्होंने कल्याण किया उन पूजनीय माता गंगा के पुत्र महात्मा भीष्म, पिता शांतनु को सुख पहुँचाने की खातिर राज्य-श्री एवं सुख-भोग को त्यागकर आजीवन ब्रह्मचर्य के व्रत पर अटल रहने वाले महान वीर भीष्म, परशुराम को परास्त करने वाले अद्वितीय योद्धा भीष्म, अविश्वासी दुर्योधन की खातिर अपने सत्यव्रत पद दृढ़ रहकर, तिल-तिल करके प्राणों की आहुति देते रहकर तथा युद्ध-भूमि पर आग के तप्त अंगारे के सामने तीखे बाणों से सारे शरीर के बिंध जाने पर भी अपनी शक्ति के अंतिम क्षण तक पांडवों को कंपाने वाले भीष्म, महाभारत के युद्ध के दसवें दिन, शक्ति की अंतिम बूंद समाप्त हो जाने पर रथ से भूमि पर गिर पड़े और भीष्म के गिरने के साथ ही कौरवों के हृदय भी गिर गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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