महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
48.विराट का भ्रम
त्रिगर्त राज सुशर्मा पर विजय प्राप्त करके राजा विराट नगर में वापस आये तो पुरवासियों ने उनका धूमधाम से स्वागत किया। अंत:पुर में राजकुमार उत्तर को न पाकर राजा ने पूछताछ की तो स्त्रियों ने बड़े उत्साह के साथ बताया कि कुमार कौरवों से लड़ने गये हैं। उन स्त्रियों की आंखों में तो राजकुमार उत्तर, कौरव सेना की कौन कहे, सारे विश्व पर विजय पाने के योग्य था। इस कारण उनको इसकी चिंता या आश्चर्य कुछ नहीं था। उन्होंने बड़ी बेफिक्री से राजकुमार के युद्ध में जाने की बात राजा से कही। पर राजा तो यह सुनकर एकदम चौंक उठा। उनके विशेष पूछने पर स्त्रियों ने कौरवों के आक्रमण आदि का सारा हाल सुनाया। यह सब सुनकर राजा का मन चिंतित हो उठा। दु:खी होकर बोले- "राजकुमार उत्तर ने एक हिजड़े को साथ लेकर यह बड़े दु:साहस का काम किया है। इतनी बड़ी सेना के सामने आंखें मूंदकर कूद पड़ा। कहाँ कौरवों की विशाल सेना और उसके सेनापति और कहाँ मेरा सुकोमल प्यारा पुत्र! अब तक तो वह कभी का मृत्यु के मुंह में पहुँच चुका होगा। इसमें कोई संदेह ही नहीं है।" कहते-कहते वृद्ध राजा का कंठ रुंध गया। फिर अपने मंत्रियों को आज्ञा दी कि सेना इकट्ठी करके ले जायें और राजकुमार यदि जीवित हो तो उसे किसी भी तरह सुरक्षित ले आयें। राजकुमार उत्तर के समाचार जानने के लिये सैनिकों का एक दल तत्काल रवाना कर दिया गया। राजा को इस प्रकार शोकातुर होते देखकर संन्यासी कंक ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा- "आप राजकुमार की चिंता न करें। बृहन्नला सारथी बनकर उनके साथ गई हुई है। बृहन्नला को आप नहीं जानते, लेकिन मैं जानता हूँ। जिस रथ की सारथी बृहन्नला होगी, उस पर चढ़कर कोई भी युद्ध में जाये, उसकी अवश्य की जीत होगी। इसलिये आपके पुत्र विजेता बनकर लौटेंगे। इसी बीच सुशर्मा पर आपकी विजय की भी खबर वहाँ पहुँच चुकी होगी। कौरव सेना में भगदड़ मच जायेगी। आप चिंता न करें।" कंक इस प्रकार बातें कर रहे थे कि इतने में उत्तर के भेजे हुए दूतों ने आकर कहा- "राजन! आपका कल्याण हो! राजकुमार जीत गये। कौरव सेना तितर-बितर कर दी गई। गायें लौटा दी गईं!" सुनकर विराट आंखें फाड़कर देखते ही रह गये। उन्हें विश्वास न होता था कि अकेला उत्तर कौरवों को जीत सकेगा? कंक ने उन्हें विश्वास दिलाकर कहा- "राजन, संदेह न करें। दूतों का कहना सच ही होना चाहिए। जब बृहन्नला सारथी बनी उसी क्षण आपके पुत्र की जीत निश्चय हो चुकी थी। मैं जानता हूँ कि देवराज इन्द्र और कृष्ण के सारथी भी बृहन्नला की बराबरी नहीं कर सकते। सो आपके पुत्र का जीत जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं।" पुत्र की विजय हुई यह जानकर विराट आनन्द और अभिमान के मारे फूले न समाये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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