महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
105.श्रीकृष्ण का लीला-संवरण
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण छत्तीस बरस तक द्वारका में राज्य करते रहे। उनके सुशासन में श्रीकृष्ण के समानवंशी भोज, वृष्णि, अन्धक आदि यादव राजकुमार असीम सुख-भोग में जीवन व्यतीत करने लगे। भोग-विलास के कारण उनका संयम और शील जाता रहा। इन्हीं दिनों एक बार कुछ तपस्वी लोग द्वारका पधारे। उच्छृंखल यादवगण उन महात्माओं की खिल्ली उड़ाने के लिये साम्ब नामक राजकुमार को स्त्री की पोशाक पहनाकर ऋषियों के सामने ले गये और उसे ऋषियों के सामने उपस्थित करके पूछा- "आप लोग शास्त्रों के ज्ञाता हैं, कृपया बतलाइये कि इस स्त्री के पुत्र होगा या पुत्री?" यादवों के इस झूठ व नटखटेपन पर ऋषियों को क्रोघ हुआ। वे बोले, "इसके एक मूसल पैदा होगा, वही तुम्हारे कुल के नाश का कारण बनेगा।" यों शाप देकर तपस्वीगण चले गये। तपस्वियों के इस तरह शाप देने पर यादव बहुत पछताये कि मजाक करके हम अपना सर्वनाश मोल ले बैठे। उनके मन में भय छा गया। समय आने पर ऋषियों के कहे अनुसार स्त्री-वेषधारी साम्ब के एक मूसल पैदा हुआ। इस पर यादवों की घबराहट और बढ़ गई। वे बड़े व्यथित हो उठे और डरने लगे कि कहीं ऋषियों का शाप पूर्ण-रूप से सच न साबित हो जाये। उनको तो मूसल में कालदेव ही नजर आया। आखिर सबने आपस में सलाह-मशविरा करके मूसल को जलाकर भस्म कर दिया और उस भस्म को समुद्र के किनारे बिखेर दिया। जब उस राख पर पानी बरसा तो वहाँ घास उग आयी। यादवों ने सोचा कि अब हमारे भय का कारण दूर हो गया और इसी भ्रम में पड़कर उन्होंने ऋषियों के शाप को बिसार दिया। इसके कई दिनों बाद, एक बार यादव लोग समुद्र-तट की सैर करते हुए मदिरा पीते, नाचते-गाते आनन्द मनाने लगे। समुद्र-तट पर उनकी भारी भीड़ जमा हो गई थी। धीरे-धीरे शराब का नशा उन पर असर करने लगा। महाभारत-युद्ध में यादव-कुल का वीर कृतवर्मा कौरवों के पक्ष में लड़ा था और सात्यकि पांडवों के पक्ष में। शराब का नशा चढ़ने पर उनमें इसी विषय को लेकर बहस होने लगी। सात्यकि कृतवर्मा की हंसी उड़ाता हुआ बोला- "क्षत्रिय होकर किसी ने सोते हुओं को मारा है? अरे कृतवर्मा! तुमने तो ऐसा करके सारे यादव कुल को अपमानित कर दिया। निर्लज्ज कहीं के! धिक्कार है तुम्हें।" सात्यकि की बात का नशे में चूर हो रहे कुछ और लोगों ने अनुमोदन किया। इस पर कृतवर्मा क्रोध के मारे आपे से बाहर हो गया। "सात्यकि! तुम मुझे उपदेश देने वाले होते कौन हो? युद्धक्षेत्र में अपना हाथ कट जाने पर जब महात्मा भूरिश्रवा शर-शैय्या पर बैठे प्रायोपवेशन कर रहे थे तब तुमने उनकी हत्या की थी। ऐसे कसाई की यह धृष्टता कि मुझे उपदेश करे!" कृतवर्मा ने कड़ककर कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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