महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
8.कुन्ती
यदुवंश के प्रसिद्ध राजा शूरसेन श्रीकृष्ण के पितामह थे। इनके पृथा नाम की कन्या थी। उसके रूप और गुणों की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। शूरसेन के फुफेरे भाई कुन्तिभोज के कोई संतान न थी। शूरसेन ने कुन्तिभोज को वचन दिया था कि उनके जो पहली संतान होगी, उसे कुन्तिभोज को गोद दे देंगे। उसी के अनुसार राजा शूरसेन ने पृथा कुन्तिभोज की गोद दे दी। कुन्तिभोज के यहाँ आने पर पृथा का नाम कुन्ती पड़ गया। कुन्ती के बचपन में ऋषि दुर्वासा एक बार कुन्तिभोज के यहाँ पधारे। कुन्ती ने एक वर्ष तक बड़ी सावधानी व सहनशीलता के साथ उनकी सेवा-सुश्रुषा की। उसकी सेवा-टहल से दुर्वासा ऋषि प्रसन्न हुए और एक दिव्य मंत्र का उसे उपदेश दिया और बोले- "कुन्तिभोज-कन्ये, यह मंत्र पढ़कर तुम किसी भी देवता का ध्यान करोगी, तो वह तुम्हारे सामने प्रकट होगा तथा अपने ही समान एक तेजस्वी पुत्र तुम्हें प्रदान करेगा।" महर्षि दुर्वासा ने दिव्य ज्ञान से यह मालूम कर लिया था कि कुन्ती को अपने पति से कोई संतान नहीं होगी। इसी कारण उन्होंने उसे ऐसा वर दिया। कुन्ती उस समय बालिका ही थी। उत्सुकतावश उसे यह जानने की प्रबल इच्छा हुई कि जो मंत्र मिला है, उसका प्रयोग करके क्यों न देखा जाये! आकाश में भगवान सूर्य अपनी प्रकाशमान किरणें फैला रहे थे। कुन्ती ने उन्हीं का ध्यान करके मंत्र को पढ़ा। तुरन्त ही उसने देखा कि आकाश में बादल छा गये। वह आश्चर्य के साथ वह दृश्य देख ही रही थी स्वयं भगवान सूर्य एक सुन्दर युवक के रूप में उसके सामने आकर खड़े हुए। उनकी कांति में ऐसा आकर्षण था कि उसका मन उनकी ओर खिंचा जा रहा था। इस अद्भुत घटना को देखकर कुन्ती चकित रह गई और घबराहट के साथ पूछा- "भगवान! आप कौन हैं?" सूर्य ने कहा- "प्रिये! मैं आदित्य हूँ। तुमने मेरा आह्वान किया, इसलिये तुम्हें पुत्र-दान करने आया हूँ।" भय से काँपती हुई बोली- "भगवान! मैं अभी कन्या हूँ। पिता के अधीन हूँ।" कौतूहलवश दुर्वासा मुनि के दिये हुए मंत्र का प्रयोग कर बैठी। मुझ नादान लड़की का अपराध क्षमा कर दें।" परन्तु मंत्र के अधीन होने के कारण सूर्य वापस न जा सके। उन्होंने लोक-निंदा से डरती हुई बालिका कुन्ती को समझाया और धीरज बंधाकर बोले- "राजकन्ये! डरो मत। मैं तुम्हें वर देता हूँ कि तुम्हें किसी प्रकार का कलंक न लगेगा। मुझसे पुत्र पाने के बाद भी तुम कुंआरी ही रहोगी।" इस प्रकार समस्त संसार को प्रकाश तथा जीवन देने वाले सूर्य के संयोग से कुमारी कुन्ती ने सूर्य के ही समान तेजस्वी एवं सुन्दर बालक को जन्म दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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