महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
45.विराट की रक्षा
कीचक के वध की बात विराट के नगर में फैली तो लोगों में बड़ा आतंक छा गया। द्रौपदी के प्रति सब सशंक हो गये। लोग आपस में कानाफूसी करने लगे। कहने लगे कि सैरंध्री है तो बड़ी सुन्दर! जो उसकी ओर आकर्षित न हो वही गनीमत। और फिर इसके पति गन्धर्व! किसी ने आंख उठाकर देखा कि यमराज के घर पहुँचा? इस कारण यह तो एक प्रकार से नगर के प्रजाजन और राजघराने के लोगों पर मानो आफत के समान है। सबको यह डर बना रहेगा कि गंधर्व नाराज होकर कहीं नगर पर कुछ आफत न ढा दें। इससे कुशल तो इसी में है कि इस सैरंध्री को ही नगर से बाहर निकाल दिया जाये। यह सोचकर कीचक के सम्बन्धी व हितचिंतक सब रानी सुदेष्णा के पास गये और उससे प्रार्थना की कि सैरंध्री को किसी तरह नगर से निकाल दिया जाये। सुदेष्णा ने द्रौपदी से कहा- "बहन! तुम बड़ी पुण्यवती हो। अब तक तुमने हमारे यहाँ जो सेवा की उसी से सन्तुष्ट हो गई। बस, अब इतनी दया करो कि हमारा नगर छोड़कर चली जाओ। तुम्हारे गंधर्व हमारे नगर पर न जाने कब और क्या आफत ढा दें।" उस समय की बात है जब पांडवों के अज्ञातवास की अवधि पूरी होने में केवल एक ही महीना रह गया था। सुदेष्णा की बात सुनकर द्रौपदी बड़ी चिन्तित हो गई। बोली- "महारानी जी! मुझसे नाराज न होइए। मैंने कोई अपराध नहीं किया। मुझे एक महीने की मोहलत और दीजिए। तब तक मेरे गंधर्व पति कृत-कार्य हो जायेंगे। ज्योंही उनका उद्देश्य पूरा हो जायेगा, मैं भी उनसे मिल जाऊंगी। इसलिए अभी मुझे काम पर से न निकालिए। मेरे पति गंधर्वगण इसके लिए आपका और राजा विराट का बड़ा आभार मानेंगे।" सुदेष्णा को डर था कि कहीं सैरंध्री नाराज न हो जाये और उसके गंधर्व पति और कोई आफत खड़ी न कर दें, इसलिए उनसे यह बात मान ली। जब से पांडवों के बारह बरस के वनवास की अवधि पूरी हुई, तभी से दुर्योधन के गुप्तचरों ने पांडवों की खोज लगानी शुरु कर दी थी। कितने ही देशों, नगरों और गांवों को छान डाला गया। कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी, जहाँ छिपकर रहा जा सकता था। महीनों इसी काम में लगे रहने पर भी जब पांडवों का कहीं पता न चला तो हारकर वे दुर्योधन के पास लौट आए और बोले- "राजकुमार! हमने पांडवों को खोजने में ऐसे स्थान तक को भी नहीं छोड़ा, जहाँ मनुष्य रह ही नहीं सकते। ऐसे-ऐसे जंगल भी छान डाले जो झाड़-झंखाड़ से भरे हैं। कोई आश्रम ऐसा नहीं रहा, जिसमें हमने उन्हें न खोजा हो। यहाँ तक कि पहाड़ की चोटियों तक को ढूंढ़े बिना नहीं छोड़ा। ऐसे नगरों में जहाँ कि लोग भरे रहते हैं, हमने एक एक से पूछकर पता लगाया, परंतु फिर भी पांडवों का कहीं पता नहीं लगा। आप निश्चय मानें कि पाण्डव अब खत्म हो चुके हैं।" इन्हीं दिनों हस्तिनापुर में कीचक के मारे जाने की खबर फैल गई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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