महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
13.लाख का घर
भीमसेन का शरीर-बल और अर्जुन की युद्ध-कुशलता देख-देखकर दुर्योधन की जलन दिन-पर दिन बढ़ती ही गई। वह ऐसे उपाय सोचने लगा कि जिससे पांडवों का नाश हो सके। इस कुमन्त्रणा में उसका मामा शकुनि और कर्ण सलाहकार बने हुए थे। बूढ़े धृतराष्ट्र बुद्धिमान थे। अपने भतीजों से उनको स्नेह भी काफी था, परन्तु अपने पुत्रों से उनका मोह भी अधिक था। दृढ़ निश्चय की उनमें कमी थी, किसी बात पर वह स्थिर नहीं रह सकते थे। अपने बेटे पर अंकुश रखने की शक्ति उनमें नहीं थी। इस कारण यह जानते हुए भी कि दुर्योधन कुराह पर चल रहा है, उन्होंने उसका ही साथ दिया। दुर्योधन पांडवों के विनाश की कोई-न-कोई चाल चलता ही रहता था। पर उधर विदुर गुप्त रूप से पांडवो की सहायता करते रहते थे जिससे पांडव समय पर ही चेत जायें और सुरक्षित रह सकें। इधर पांडवों की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जाती थी। चौराहों और सभा-समाजों में, जहाँ कहीं भी लोग इकट्ठे होते, पांडवों के गुणों की प्रशंसा ही सुनने में आती। लोग कहते कि राजगद्दी पर बैठने के योग्य तो युधिष्ठिर ही हैं। वे कहते- "धृतराष्ट्र तो जन्म से अन्धे थे, इस कारण उनके छोटे भाई पाण्डु ही सिंहासन पर बैठे थे। उनकी अकाल-मृत्यु हो जाने और पांडवों के बालक होने के कारण कुछ समय के लिए धृतराष्ट्र ने राजकाज संभाला था। अब जब युधिष्ठिर बड़े हो गए हैं, तो फिर आगे धृतराष्ट्र को राज्य अपने ही अधीन रखने का क्या अधिकार है? पितामह भीष्म का तो कर्तव्य है कि वह धृतराष्ट्र से राज्य का भार युधिष्ठिर को दिला दें। युधिष्ठिर ही सारी प्रजा के साथ न्यायपूर्वक व्यवहार कर सकेंगे।" ज्यों-ज्यों पांडवों की यह लोकप्रियता दुर्योधन के देखने में आती, ईर्ष्या से वह और भी अधिक कुढ़ने लगता। एक दिन धृतराष्ट्र को अकेले में पाकर दुर्योधन बोला- "पिता जी, पुरवासी लोग तरह-तरह की बातें करते हैं, आपके बारे में भी और स्वयं पितामह के बारे में भी। वैसे लोग अब पितामह को सम्मान की निगाह से कम ही देखते हैं। लोग तो हलचल मचा रहे हैं कि युधिष्ठिर को जल्दी ही राज-सिंहासन पर बिठा दिया जाये। इस कारण ऐसा लगता है कि हम पर कोई विपत्ति आने वाली है। जन्म से दिखाई न देने के कारण आप, बड़े होते हुए भी राज्य से वंचित ही रह गये। राज्य-सत्ता आपके छोटे भाई के हाथ में चली गई। अब यदि युधिष्ठिर को राजा बना दिया गया, तो फिर सात पीढियों तक हम राज्य की आशा नहीं कर सकेंगे। युधिष्ठिर के बाद उसी का बेटा राजा बनेगा। हम तो फिर कहीं के भी न रहेंगे। हो सकता है कि हमें भीख मांगने तक को मजबूर होना पड़े। ऐसे जीवन से तो नरक अच्छा! पिता जी, हमसे तो यह अपमान न सहा जायेगा।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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